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अध्याय २ .
और चारित्र में एकता है।"
मुनि जीवन कैसा हो ? समतायुक्त ! इस अपेक्षा से श्री जिनदास गणि ने आचारांग चूणि तथा श्री शीलांकाचार्य ने आचारांग वृत्ति में जो व्याख्या की है उनमें 'सम्म' शब्द का रूपांतर सम्यग्दृष्टि या सम्यक्त्व किया। किन्तु उसका रूपांतर 'साम्य' लिया जाय तो अधिक संगत हो जाएगा। क्योंकि आचारांग में ही कहा गया है
"सभी प्राणियों को आयु प्रिय है। सभी सुखार्थी है, दुःख सभी को प्रतिकूल और अनिष्ट है। सभी को मृत्यु अप्रिय है, जीना सभी को प्रिय है। प्रत्येक प्राणी जीवन की अभिलाषा रखता है।" . दशवैकालिक सूत्र में भी यही कहा है। इसीलिए सूत्रकार ने 'सम्यक्त्व' नामक चतुर्थ अध्ययन के प्रारंभ में इसी दृष्टिकोण को रखकर अहिंसा धर्म को प्रधानता देते हुए कहा है कि___सभी प्राणी (बेइन्द्रियादि) सभी भूत (वनस्पति) सभी जीव (पंचेन्द्रिय) और सभी. सत्त्वों (पृथ्वीकायादि) को नहीं मारना, उन पर हुकूमत नहीं करना, दास नहीं बनाना, उन्हें संताप नहीं देना, प्राणरहित नहीं करना । यही धर्म शुद्ध नित्य और शाश्वत है।' १. सम्यगिति-सम्यग्ज्ञानं सम्यक्त्वं वा तत्सहचरितं, अनयोः सहभावा
देकग्रहणे द्वितीयं ग्रहणं न्याय्यं, यदिदं सम्यग्ज्ञानं सम्यक्त्वं वेत्येतत्पश्यत तन्मुने वो मौनसंयमानुष्ठानमित्येतत्पश्यत, यच्च मौनमित्येतत् पश्यत तत्सम्यग्ज्ञानं नैश्वयिक सम्यक्त्वं वा पश्यतः; शानस्य विरति- फलन्यात् सम्यक्त्वस्य चाभिव्यक्ति कारणत्वात् सम्यक्त्वज्ञानचरणानामेकताऽध्यवसेयेति भावार्थः ।"
-आचा० वृत्ति, पंचम अध्ययन पृ. २१२ २. “सव्वे पाणा पिआउया, सुहसाता, दुक्खपडिकूला अप्पियवधा, पिय
जीविणो जीवितुकामा"-आचा० द्वि० अध्य० तृ० उद्दशक पृ. १२१ ॥ ३. देखो-दशवकालिक सूत्र. अध्ययन ६, गा १० ॥ ४. "सव्वे पाणा सव्वे भूता सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा, ण अजावेतव्वा, ण परिघेत्तव्वा ण परितावेयव्वा ण उद्दवेयव्वा । एस धम्मे सुद्धे णितिए सासए ।"-आचा०च० अध्य०प्रथम उद्दे० पृ. २८४