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________________ जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप गया । अतएव इस में सम्यक्त्व और मुनित्व का एकीकरण किया है। मुनि सम्यग्दर्शन युक्त है इस का कथन अनेक स्थानों पर किया है । इस प्रकार मुनित्व और सम्यक्त्व का एकीकरण करते हुए कहा है “जो सम्यक्त्व है उसे मुनि धर्म के रूप में देखों और जो मुनिधर्म है उसे सम्यक्त्व के रूप में देखो।" . . आचारांग चूर्णि में जिनदास गणि ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा" संयम मुनिभाव है, निश्चयनय की अपेक्षा से चारित्रवान् सम्यग्दृष्टि होता ही है। सम्यक्त्व है वहाँ नियम से सम्यग्ज्ञान है, जहाँ सम्यग्ज्ञान है वहाँ सम्यक्त्व है ही। विरति ज्ञानपूर्वक और ज्ञान . सम्यक्त्वपूर्वक है।"२ यहाँ सूत्रकार के आशय को स्पष्ट करने के लिए सम्यक्त्व और मुनिधर्म के एकीकरण की व्याख्या चूर्णिकार को करनी पड़ी। मुनिभाव क्योंकि सम्यक्त्वपूर्वक है अतएव सम्यक्त्व और मुनिभाव का एकीकरण सूत्र में सूचित है। ___आचारांग वृत्ति में श्रीमद् शीलांकाचार्य ने इसी बात को और अधिक स्पष्ट किया है-“ सम्यक्त्व और सम्यग्ज्ञान में सहचारित्व है। इसलिए एक के ग्रहण से दूसरे का ग्रहण न्यायोचित है । मौन अर्थात् मुनिधर्म-संयमानुष्ठान है। जहाँ मुनिधर्म है वहाँ सम्यग्ज्ञान और जहाँ सम्यग्ज्ञान है वहाँ सम्यक्त्व है। ज्ञान का फल विरति होने से सम्यक्त्व की भी अभिव्यक्ति होती है। इस तरह सम्यक्त्व, ज्ञान १. "ज सम्मति पासहा तं मोणंति पासहा ।। जं मोणंति पासहा तं सम्मति पासहा ।" -आचामू०प्र०श्रु० पंचम अध्याय उद्देशक ३. पृ. ३८६ २. “संजमभावो मोणं, णिच्छयणयस्स जो चरित्ती सो सम्मदिंट्री, अतो वुञ्चति-जं सम्मत्तं, तत्थ णियमा नाणं, जत्थ नाणं तत्थ णियमा सम्मत्तं अतो तदुभयभविसम्मत्तम् ।" आचा० चूणि पंचम अध्ययन उ० ३. पृ १७९
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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