SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय -२ (क) जैनागमगत सम्यक्त्व विवेचन - सम्यक्त्व विषय पर अपना शोध-प्रबंध प्रारंभ करने से पूर्व यह बताना आवश्यक समझती हूँ कि 'सम्यक्त्व' है क्या ? अन्य दर्शनों ने जिसे श्रद्धा कहा है उसी · अध्यात्म श्रद्धा को, सम्यक् श्रद्धा को सम्यक्त्व या सम्यग्दर्शन कहने की जैन परंपरा स्थिर हुई है। प्राचीन. समय में ऋषि-महर्षि जिस प्रकार गुरु-दीक्षा के रुप में कान में मंत्र फूंकते थे और आज भी जिस प्रकार महेश योगी-ज्ञान और दादा भगवान् अक्रमविज्ञान-विज्ञान देते हैं उसी प्रकार जैनों में श्रद्धालु भक्तों को गुरु व्यावहारिक रूप से सम्यक्त्व प्रदान करते हैं। आचार दिनकर सूत्र में 'सम्यक्त्व प्रदान करने की विधि' का स्पष्ट उल्लेख है। . · गुरु द्वारा प्रदत्त यह सम्यक्त्व ही वास्तव में सम्यक्त्व है या • इस का अन्य स्वरूप है, इस की जानकारी के लिए जैन साहित्य का . अध्ययन अपेक्षित है। अतएव इस निबंध में मैंने सम्यक्त्व के विचार की परंपरा का निरूपण जैनशास्त्रों का आधार लेकर किया है। • जैन. आगमगत सम्यक्त्व विवेचन - 'सम्यक्त्व' क्या है ? सम्यक्त्व का स्वरूप क्या है ? सम्यक्त्व का अर्थ हो गया है 'श्रद्धान'। वस्तु-तत्त्व पर श्रद्धान ! पदार्थों पर श्रद्धान ! अन्य दर्शनों ने जिसे श्रद्धा कहा उसी को जैनों ने पारिभाषिक शब्द दिया है सम्यक्त्व अर्थात् सम्यग्दर्शन । सम्यक्त्व और सम्यग्दर्शन रूढ शब्द हैं। श्रद्धा, प्रतीति, विश्वास, रुचि ये सभी श्रद्धा के पर्यायवाची नाम हैं। इसी श्रद्धा को सम्यक्त्व या सम्यग्दर्शन कहा गया है । सम्यग्दर्शन का स्थान प्रथम तथा उसके पश्चात् ज्ञान का
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy