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परिशिष्ट-२ .निश्चय नय
-शुद्ध द्रव्य के निरूपण करने वाले नय को निश्चय या शुद्ध नय . कहते हैं । जै. ल. २६२९. निद्वव -जो व्यक्ति किसी महापुरुष के सिद्धान्त को मानता हुआ भी किसी विशेष बात में विरोध करता है और फिर स्वयं एक अलग मत का प्रवर्तक बन बैठता है उसे निहनव कहते हैं । जै. सि. बो.
सं. २/३४३. पंचेन्द्रिय तिर्यंच --पांच इन्द्रिय वाले जीवों के चार वर्ग हैं—देव, नारक, मनुष्य
और तिर्यच । पशु-पक्षी आदि पंचेन्द्रिय तिर्यच हैं । त. सू. ९९ परिणाम ___- वस्तु के भाव को परिणाम कहते हैं, वह दो प्रकार का है गुण
__और पर्याय । जै. सि. को. ३/३०. पर्याप्त . .. -जिस कर्म के उदय से जीव पर्याप्त होते हैं वह पर्याप्त नाम कर्म .: है। इसके उदय से आहारादि छः पर्याप्तियों की रचना होती ... है । जै. सि. को. ३/४१. पर्यायार्थिक नय .. -देखो नय । पांच समिति _- मुनि जीवन की सम्यक् प्रकार से प्रवृत्ति का नाम समिति है।
ईर्या, भाषा, एषणा, आदान निक्षेपण और प्रतिष्ठापण ये पांच समिति संयम शुद्धि के कारण कही गई है । जै. सि. को. /४३४०.
पासत्था
-जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, और प्रवचन में सम्यक् उपयोग वाला नहीं है । ज्ञानादि के समीप रहकर भी जो उन्हें अपनाता