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________________ अध्याय १ . इसके समाधान में सभी को यह विदित है कि 'जिन' के अनुयायी जैन कहलाते है । 'जैन' संज्ञा से उन्हीं को अभिप्रेत किया जाता है जिन्होंने राग द्वेष को जीत लिया है अर्थात् विजय प्राप्त कर ली है। जिस प्रकार शिव के उपासक शैव, विष्णु के उपासक वैष्णव, ईसा के अनुयायी ईसाई कहलाये, उसी भांति जिन के अनुयायी भी जैन कहलाये। इस जैन दर्शन का इतिहास क्या है ? और इसके प्रवर्तक कौन है ? कुछ. समय पूर्व जैन दर्शन के प्रणेता भगवान् महावीर को ही माना जाता था और इसे बौद्ध दर्शन के पश्चात्वर्ती माना जाता था किन्तु आधुनिक विद्वानों ने यह सिद्ध कर दिया कि जैन दर्शन बौद्ध दर्शन से प्राचीन है एवं इस के प्रवर्तक भगवान् महावीर ही नहीं किन्तु उनसे पूर्ववर्ती पार्श्वनाथ तीर्थंकर को भी स्वीकार किया। विद्वानों की शोध एवं भागवत आदि पुराणों से तो यहाँ तक सिद्ध हो गया है कि जैन दर्शन के प्रवर्तक आदि तीर्थंकर ऋषभदेव थे। इस की शोध का श्रेय जर्मन विद्वान स्व. हर्मन याकोबी को है। उनके अनुसार-" इस में कोई सबूत नहीं कि भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के संस्थापक थे। जैन परम्परा प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को जैन धर्म का संस्थापक मानने में एकमत हैं । अतः इस मान्यता में ऐतिहासिक सत्य की संभावना है।" . . पाश्चात्य विद्वानों ने ही नहीं भारतीय विद्वान् सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन ने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा कि “इस बात के प्रमाण पाये जाते हैं कि ई. पूर्व प्रथम शताब्दी में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की पूजा होती थी। इस में कोई संदेह नहीं कि जैन धर्म वर्द्धमान और 1. “There is nothing to prove that Parshva was the founder of Jainism Jain tradition is unanimous in making Rishabha the first Tirthankara (as its founder) there may be something historical in the tradition which mākes him the first Tirthankara”. -Indian Antiquary, Vol. IX, p. 163.
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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