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अध्याय ३.
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उसका उल्लेख इस प्रकार किया है कि " जो अव्यक्त पर श्रद्धा रखते हैं, प्रार्थना करते है उसे परमात्मा सब कुछ देता है" और पूर्वजों को जो दिया गया है, वह दिव्य ज्ञान पर श्रद्धा रखने और परलोक में श्रद्धा रखने के कारण ।' कुरान पर श्रद्धा रखने के लिए कहा गया है कि " यह (कुरान) एक श्रद्धेय दूत का कथन है। यह कोई कवि की शब्द रचना नहीं, किंतु तुम लोग इसमें श्रद्धा कम रखते हो। जिसमें श्रद्धा है उसके लिए इसमें प्रबोधन और शमन है।' किंतु जो श्रद्धाहीन है उनको ईश्वर मार्ग नहीं बताता है। उसे दृष्टि प्राप्त नहीं होती किंतु जिसे यह दृष्टि प्राप्त हो जाती है वह सूक्ष्मदर्शी
और सावधान होता है। जो श्रद्धाहीन स्थिति में मृत्यु प्राप्त करता है उसके लिए दुःखदः सजा तैयार होती है। श्रद्धाहीन दुःखी होता है, यहाँ यह आशय निकलता है।
श्रद्धा के लिए तो यहाँ तक कहा है कि " किसी जीव को ईश्वर की अनुज्ञा के बिना श्रद्धा रखना अशक्य है । वह जिसे मार्गभ्रष्ट रखना इच्छता है, उसके लिए उसका हृदय बहुत संकुचित बनाता है, जैसे कि वह आंकाश की चढ़ाई जोर देकर चढ़ता हो। इस प्रकार वह श्रद्धाहीनों की फजीती (बुरी गत) करता है। वह ईश्वर श्रद्धाप्रतिपालक है, श्रद्धालु है।
१. कुरान-सार, २-१-५ ॥ २.वही, ६९-४०-४१ ॥ ३. वही, ४१-४४ ॥ ४. वही, ३९-३ ॥ ५. वही, ६-१०३ ॥ ६. वही, ४-९७-१८ ॥ ७. वही, १०-१००, पृ० ४२ ।। ८. वही, ६-१२५, पृ० ४३ । ९. वही, ५९-२३, पृ० ४५ ॥ १०. वही, ७-१४३, पृ० ४८ ॥