________________
२३० .
जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप नहीं कर सके । तब ईसा ने कहा कि ओ श्रद्धा बिना के लोगों ! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूं ? उसे रोगमुक्त किया । तब शिष्यों ने पूछा कि हमसे वह रोगमुक्त क्यों नहीं हो सका ? तब ईसा ने कहा कि तुम्हारे में श्रद्धा का अभाव है । मैं विश्वास के साथ कहता हूँ कि यदि तुम में राई के दाने जितनी भी श्रद्धा हो और तुम यदि इस. पर्वत को कहो कि यहाँ से दूर जा तो वह भी चला जाएगा । श्रद्धा के होने पर कुछ भी अशक्य नहीं । श्रद्धा से क्या नहीं हो सकता ?' .
- (संत माथ्यी कृत शुभ संदेश). इस प्रकार के संदर्भ एवं दृष्टांत बाइबिल में अनेक स्थलों पर उपलब्ध होते है कि श्रद्धा के कारण ईसा के स्पर्श एवं आज्ञा से अनेक रोगी व्याधिमुक्त हुए।
इस प्रकार हम देखते हैं कि श्रद्धा को ईसाई धर्म में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । श्रद्धा व्यावहारिक जीवन के लिए व आध्यात्मिक जीवन का अनिवार्य अंग माना गया है। यह श्रद्धा सम्यग्दर्शन रूप में कुछ अंशों में ग्राह्य हो सकती है। किंतु जैनदर्शन में जो इसका स्वरूपनिर्दश है उससे यह श्रद्धा भिन्नता लिए हुए है । किंतु यहाँ इतना तो निश्चित माना है कि श्रद्धा के बिना मुक्ति संभव नहीं । इस्लाम-धर्म
ईसाई धर्म में सम्यग्दर्शन का विचार करने के पश्चात् अब इस्लाम-धर्म इस विषय पर विचार करेंगे । इस्लाम धर्म का उद्भव अरेबिया देश में हुआ । इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर मुहम्मद थे। जिनका जन्म मक्का शहर में ईस्वीसन् ५७० में हुआ । इस्लामधर्म का ग्रन्थ "कुरान शरीफ" है।
"कुरान-शरीफ' में श्रद्धा विषय पर काफी चर्चा की गई है। अनके स्थलों पर श्रद्धा का विचार किया गया है । "कुरान-सार" में १. भगवान ईसु नो शुभसंदेश अने प्रेषितो नां चरितो, पृ० ५०, १४०, २१९ एवं पृ० २३, २०४, ५२, १३४, २८, १२४, २१३ ॥