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________________ अध्याय १. है जो सम-विषम स्थानों का या उच्चावच प्रदेशों का अन्तर दर्शाकर मनुष्य को और अन्य प्राणियों को स्खलित होते रोककर स्थिरता या प्रतिष्ठा देती है । इस प्रकार अन्य इन्द्रियों की तुलना में चक्षु का स्थान सत्य के और समत्व के समीप अधिकाधिक है, ऐसा उपनिषद् सूचित करता है। ___ व्यावहारिक और स्थूल जीवन में दर्शन ये सत्य के समीप अधिकाधिक होने से यही दर्शन शब्द अध्यात्म ज्ञान के अर्थ में व्यवहृत हुआ । इसी से ऋषि, कवि या योगिजनादि ने आत्मापरमात्मा जैसी अतीन्द्रिय वस्तुओं का साक्षात्कार किया हो । व्यवहार में दर्शन की महिमा होने से ही साक्षी शब्द का अर्थ भी साक्षात् द्रष्टा इस प्रकार वैयाकरणों ने भी किया है। .. आध्यात्मिक पदार्थों का, उनका साक्षात् आकलन सत्यस्पर्शी होकर दर्शन कहलाता है। इस प्रकार अध्यात्म विद्या के अर्थ में प्रचलित दर्शन शब्द का फलितार्थ यह हुआ कि आत्मा, परमात्मा आदि इन्द्रियातीत हैं। दर्शन यह ज्ञानशुद्धि की और उसकी सत्यता की पराकाष्ठा है । दर्शन अर्थात् ज्ञानशुद्धि का परिपाक । . : अतीन्द्रिय वस्तुओं का दर्शन हर किसी को यकायक नहीं होता । उस तक पहुँचने का क्रम है, उसके मुख्यतः तीन सोपान है । प्रथम तो अनुभवीजनों के पास से जो तत्त्व दर्शन की लालसा हो, उस विषय को जानना पड़ता है। यह हुई श्रवण-भूमिका । जो श्रवण १. चक्षुबै सत्यं चक्षुर्हि वै सत्यं तस्माद्यदिदानी द्वौ विवदमानावेयाता महममदर्शमहमश्रौषिमिति । य एवं ब्रूयादहमदर्शमिति तस्मा एव श्रद्धध्याम् तद्वै तत्सत्यं... बृ. ५. १४ ४. २. “साक्षाद् द्रष्टा ।" साक्षातो द्रष्टेत्यस्मिन्नर्थ इन् नाम्नि स्यात् । साक्षी। . सिद्ध हेम (लघुवृत्ति) ७. १. १९७. ३. “आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो। मैत्रेयि ! आत्मनो वा अरे दर्शनेन श्रवणेन मत्या विज्ञानेने सर्व विदितम्", बृहदा. २.४.५.
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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