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अध्याय ३.
• किंतु साथ ही जैन विचार और हिन्दू विचारणा में अंतर यह है कि भागवत में भक्ति ईश्वर निष्ठा, ईश्वर कृपा से होती है। ईश्वरेच्छा के अभाव में भक्ति संभव नहीं । जैन विचार इससे भिन्न है, इनकी निष्ठा आत्मा में है । उनके अनुसार आत्मा कर्मों के अनुसार उसके फलस्वरूप संसार में भ्रमण करता है । स्वपुरुषार्थ द्वारा कर्म क्षय करके सम्यग्दर्शनादि से मुक्ति प्राप्त करता है । हिंदुओं में साध्य स्वयं साधक के पास आता है जबकि जैन में साधक स्वयं पुरुषार्थ करके साध्य की ओर बढ़कर उसे प्राप्त करता है । यह यहाँ भिन्नता है । अन्य धर्म-दर्शन . अब तक हमने भारतीय दर्शनों में एवं महाभारत, गीता एवं भागवत में सम्यक्त्व विषयक विचारणा की । अब हम अन्य प्रचलित धर्म व दर्शनों में इसके स्वरूप पर दृष्टिपात करेंगे। चूंकि भारत धर्मनिरपेक्ष राज्य है, अतः यहाँ अनेकानेक धर्मों का होना संभव है किंतु प्रमुख प्रचलित धर्मों का ही यहाँ हमने निरूपण किया है । १. ईसाई धर्म-दर्शन
. ईसाई धर्म यहूदी धर्म से उत्पन्न हुआ तथा दार्शनिक दृष्टि से : यूनानी दर्शन से पर्याप्त मात्रा में प्रभावित हुआ है । ईसाई दर्शन बाइबिल-ग्रंथ पर आधारित है, जिसके आद्य-प्रणेता ईसा मसीह है। बाइबिल ग्रन्थ में सम्यग्दर्शन को हम विश्वास या श्रद्धा रूप में देख .. सकते है । “योहन फाइस" ने ईसाई-दर्शन नामक पुस्तक में लिखा है कि' "ईसाई धर्म में विश्वास या आस्था का विशेष महत्त्व है । इस आस्था में मुक्ति संबंधी निश्चय और मुक्तिदाता ईश्वर के प्रति श्रद्धा ये दोनों निहित हैं । दूसरे शब्दों में, विश्वास का तात्पर्य है : ईसा भक्त की ओर से मुक्तिकर्ता स्वरूप ईसा मसीह को आत्मसमर्पण ।
यथार्थ के विश्वासी पुनर्जीवित ईसा का प्रभुत्व साक्ष्य मात्र के आधार पर स्वीकार करते हैं । विश्वास का मुक्ति से संबंध प्रतीत १. ईसाई दर्शन-योहन फाइस, पृ० ५३-५४ ।।