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________________ अध्याय – १ जैनदर्शन : प्राचीनता "जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप" . अपने इस विषय में सम्यक्त्व के स्वरूप का विवेचन करने से पूर्व जैन-दर्शन के विषय में कुछ कहना भी आवश्यक है। 'दर्शन' शब्द विविध रूपों में विविध अर्थ लिए हमारे समक्ष आता है । भारतीय दर्शनों में जैन दर्शन भी समाविष्ट है । साधारणतया दर्शन शब्द पहले तीन अर्थों में प्रयुक्त होता था. १. चाक्षुषज्ञान अर्थ में, २. तत्त्वों के साक्षात्कार अर्थ में, एवं ३. भारतीय दर्शन,. न्याय दर्शन इत्यादि परम्परासम्मत निश्चित . विचार शंखला के अर्थ में। १, चाक्षुष ज्ञान अर्थ में दर्शन उसे कहते हैं जो नेत्रादि इन्द्रियों एवं पदार्थ के सन्निकर्ष से घट, पट आदि का दर्शन अर्थात् - दिखाई देते हैं।" २. तत्त्वों के साक्षात्कार अर्थ में भी दर्शन प्रयुक्त होता है। सभी दार्शनिक अपने-अपने साम्प्रदायिक दर्शन को साक्षात्कार रूप में ही मानते चले आए हैं। इस तत्त्व दर्शन के अर्थ में व्यवहार में दर्शन का अर्थ साक्षात्कार कहलाने लगा। जिस में शंका, भ्रम, मतभेद को स्थान न था। अतः आगे चलकर यह सबल प्रतीति अर्थ में लिया जाने लगा, जो कि विश्वास पर आधारित था । जब साक्षात्कार विश्वास या सबल प्रतीति अर्थ में दर्शन का अर्थ किया जाने लगा तब विभिन्न दलीलें,
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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