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________________ (इ) (१) श्रीमद् हरिभद्रसूरि के ग्रन्थ-१३८, (२) उपदेशमाला १५०, (३) महापुराण-१५१, (४) पुरुषार्थसिद्धयुपाय-१५४, (५) नेमिचंद्राचार्य-१५४, (६) योगशास्त्र-१५७ (७) शानार्णव १५८ । . (ई) (१) रत्नकरण्ड श्रावकाचार-१५९, (२) मूल शुद्धिं-१६१, (३) आचार दिनकर-१६१, (४) अध्यात्म सार-१६३, (५) पंचाध्यायी-१६४, (६) लोक प्रकाश-१५७, (७) सम्यक्त्व परीक्षा-१७०। अध्याय ३-सम्यग्दर्शन के विषय में अन्य दर्शनों की विचारणा १७१-२३० (१) बौद्ध धर्म दर्शन-१७१, (२) सांख्य एवं योग दर्शन१८१, १८६, (३) न्याय एवं वैशेषिक दर्शन-१९२, (४) वेदांत दर्शन-१९६, (५) महाभारत, गीता, भागवत-२०६, २१०, २२१, (६) अन्य धर्म दर्शन (ईसाई एवं इस्लाम) २२७, २३० । अध्याय ४-उपसंहार __२३५ . परिशिष्ट (१) “सम्यक्त्व" शब्द सूचित ग्रन्थ ... (२) जैन पारिभाषिक शब्द सूची संदर्भ ग्रन्थ सूची... (१) मूल ग्रन्थ-२५३, (२) आनुषंगिक ग्रन्थ-२६५, (३) शब्द संदर्भ सूची-२७१।
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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