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"जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप"
क्रम दर्शन सम्यक् समर्पण आशीर्वचन आमुख प्रस्तुति दो शब्द अभिव्यक्ति
उपोद्घात अध्याय १-जैनं दर्शन : प्राचीनता अध्याय २-(क) जैनागमगत सम्यक्त्व विवेचन ११-१७०
(१) आचारांग-सूत्रकृतांग-१४, (२) दशवैकालिक-उत्तराध्ययन-३२, (३) निशीथ-दशाश्रुतस्कन्ध-प्रज्ञापना-४३, (४) भगवती (वियाह-पण्णत्ति)-५०, (५) नंदी-अनुयोगद्वार ५७, (६) स्थानांग-समवायांग-६४, (७) शाताधर्मकथांग, उपासकदशांग, प्रश्नव्याकरण-७३, (८) आवश्यकः नियुक्ति विशेषावश्यक-७७ ।
(ख) आगमोतर साहित्य में सम्यक्त्व ८५-१७० - अ तत्त्वार्थाधिगम सूत्र व टीकाएँ ... आ दिगम्बर साहित्य
१०९ (१) कुंदकुंदाचार्य के ग्रन्थ-दर्शनादि षट् पाहुड, समयसार, नियमसार, प्रवचनसार इत्यादि-१०९, (२) षटखण्डा गम (धवला टीका)-११३, (३) कषायपोहुड (जयधवला टीका)-१३१, (४) सन्मति प्रकरण १३५, (५) कर्म प्रकृति १३६।