SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १-१० "जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप" क्रम दर्शन सम्यक् समर्पण आशीर्वचन आमुख प्रस्तुति दो शब्द अभिव्यक्ति उपोद्घात अध्याय १-जैनं दर्शन : प्राचीनता अध्याय २-(क) जैनागमगत सम्यक्त्व विवेचन ११-१७० (१) आचारांग-सूत्रकृतांग-१४, (२) दशवैकालिक-उत्तराध्ययन-३२, (३) निशीथ-दशाश्रुतस्कन्ध-प्रज्ञापना-४३, (४) भगवती (वियाह-पण्णत्ति)-५०, (५) नंदी-अनुयोगद्वार ५७, (६) स्थानांग-समवायांग-६४, (७) शाताधर्मकथांग, उपासकदशांग, प्रश्नव्याकरण-७३, (८) आवश्यकः नियुक्ति विशेषावश्यक-७७ । (ख) आगमोतर साहित्य में सम्यक्त्व ८५-१७० - अ तत्त्वार्थाधिगम सूत्र व टीकाएँ ... आ दिगम्बर साहित्य १०९ (१) कुंदकुंदाचार्य के ग्रन्थ-दर्शनादि षट् पाहुड, समयसार, नियमसार, प्रवचनसार इत्यादि-१०९, (२) षटखण्डा गम (धवला टीका)-११३, (३) कषायपोहुड (जयधवला टीका)-१३१, (४) सन्मति प्रकरण १३५, (५) कर्म प्रकृति १३६।
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy