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________________ 16 इस ग्रन्थ निर्माण में आद्यप्रेरिका - गुरूवर्या श्री विचक्षण श्रीजी. म. सा., एवं श्रीयुत स्व. अगरचंदजी नाहटा है जो कि इसके आकलन से पूर्व ही इस लोक से विदा हो गये हैं । पूज्या प्रधान पद विभूषिता अविचल श्रीजी म. सा. के आशीर्वाद, पू. शासन ज्योति श्री मनोहर श्री जी म. सा., पू. विदुषीवर्या श्री मुक्तिप्रभा श्रीजी म. सा. के सत्प्रयासों एवं सतत प्रेरणा गुरू-भगिनियों के फलस्वरूप ही यह ग्रन्थ पूर्णता की ओर अग्रसर हुआ है । इसके अतिरिक्त पंडितवर्य आगमवेत्ता महामनीषी उदारमना दलसुखभाई मालवाणिया, डॉ. राममूर्ति शर्मा, डॉ, आर. एम. पाठक, डॉ. नरेन्द्र भानावत, डॉ. र. म. शाह, डॉ. यज्ञेश्वर शास्त्री का आत्मीयता पूर्वक प्रस्तुति प्रेषित करने हेतु आदरपूर्ण स्मरण करती हूं और उनकी भी जिन्होंने इसमें यत्किंचित् सहयोग दिया हो ।. इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने हेतु 'विचक्षण स्मृति प्रकाशन' का अर्थ सौजन्य में श्री शेरमल शंकरलाल मालु, एवं बाबूभाई व उनके पुत्र भी साधुवाद के पात्र हैं जिन्होंने चंचला लक्ष्मी का सुकृत् में सदुपयोग किया है । 'भरत प्रिन्टरी' ने इसकी आकर्षक छपाई से आकर्षित किया, उसका भी आदरपूर्वक स्मरण करती हूँ । इस ग्रन्थ का माध्यम शोधकार्य अवश्य रहा है किन्तु ज्ञान की अतल गहराई तक अपने आपको को ले जाऊँ यह उद्देश्य भी निहित है । गुरूजनों से वही प्रार्थना करती हूँ कि सम्यक्त्वमय आत्मा सुवासित हो ऐसी अनहद कृपा के वर्षण सह आशीष प्रदान करें । १४-१२-८७ अहमदाबाद सुरेखा श्री
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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