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अध्याय २.
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बेलगु की प्रख्यात बाहुबली गोम्मटेश्वर की प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी । नेमिचन्द्र सिद्धांतशास्त्र के विशिष्ट विद्वान् थे, अतएव वे सिद्धांतचक्रवर्ती कहलाते थे | उनकी निम्नलिखित कृतियां हैं - गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासार, त्रिलोकसार, बृहद्रव्यसंग्रह एवं कर्मप्रकृति । ये सब ग्रन्थ धवलादि महासिद्धांतग्रन्थों के आधार से बनाये गये हैं । '
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अब हम इनके ग्रन्थों का अवलोकन कर सम्यक्त्व विषयगत विचार इनमें देखेंगे । गोम्मटसार में कहा है कि -संसारी जीव पदार्थ को देखकर जानता है कि पीछे सात भंग वाले नयों से निश्चय कर श्रद्धान करता है इस प्रकार क्रम से दर्शन ज्ञान और सम्यक्त्व ये तीन जीव के गुण है । "
इस क्रम का पुनरुल्लेख किया है
आत्मा के सब गुणों में ज्ञान गुण पूज्य है इस कारण इसे पहले कहा है, उसके पीछे दर्शन कहा है, और उसके बाद सम्यक्त्व कहा है ।
पूर्ववर्ती आचार्यों ने ज्ञान से पूर्व दर्शन ( सम्यक्त्व) अंगीकार किया है किंतु यहाँ नेमिचन्द्राचार्य ने ज्ञान को प्राथमिकता दी । क्यों दी ? इसका स्पष्टीकरण इन्होंने यहाँ नहीं किया है ।
अब आगे ग्रन्थकर्त्ता आयतन का कथन करते हैं
आयतन जो कि सम्यक्त्व प्रकृति के नोकर्म है वे हैं - १. जिन, २. जिनमंदिर, ३. जिनागम, ४. जिनागम के धारक, ५. तप, ६. तप के धारक और छः अनायतन - १. कुदेव, २. कुदेव का मंदिर,
१. जैन साहित्य का बृहद् ईतिहास, भाग ४, पृ० १३३ - १३४ ।। २. अत्थं देखिय जाणदि पच्छा सद्दहदि सत्तभंगीहि ।
इदि दंसणं च णाणं सम्मत्तं होंति जीवगुणा ||
- गोम्मटसार, कर्मकांड, गाथा १५ ॥ ३. अ०भरहिदादु पुण्यं णाणं तत्तो हि दंसणं होदि । सम्मत्तमदो विरियं जीवाजीवगदमिदि चरिमे ॥ वही, गाथा १६ ॥