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अध्याय २..
શિકાર .. मोक्ष का उपाय-सम्यक्त्व, ज्ञान, चारित्र संपूर्ण मोक्ष साधन के उपाय है। इसलिए अपनी शक्ति के अनुसार यत्न करना चाहिए।' . ये छः स्थान है।
इस प्रकार सम्यक्त्व की विशुद्धि के ६७ भेद ग्रन्थकार ने सम्यक्त्व सप्तति पंचाशक एवं संबोध प्रकरण नामक ग्रन्थ में बताये हैं। इसी के साथ सम्यक्त्व का स्वरूप, प्राप्ति, अधिकारी भेद-प्रभेद पूर्वग्रन्थानुसार स्वरचित ग्रन्थ-पंचाशक, धर्मबिंदु, श्रावक धर्म विधि प्रकरण आदि ग्रन्थों में किया है। .. सम्यक्त्व की विशुद्धि के निमित्त अर्थात् सम्यक्त्व को निर्मल
करने वाले इन सडसठ भेदों के साथ " सम्यक्त्व सप्तति" के टीकाकार संघतिलकाचार्य ने इन पर दृष्टांत भी दिये हैं। कथाओं के माध्यम से स्पष्टतया उस बोल को अर्थात् सम्यक्त्व के हृदय को खोला है। जैसे कि सम्यक्त्व के पांच लक्षण में प्रथम है शम । " शम" लक्षण को समझाने के लिए मेतार्थ मुंनि का दृष्टांत दिया है। मेतार्थ मुनि ने जीव दया के माध्यम से हृदय में "समत्व" धारण किया। अपने ऊपर होने वाले उपसर्ग को भी सहन किया, प्राणी के रक्षणार्थ । इस प्रकार संडसठ ही भेदों के साथ अधिकांश उदाहरण टीकाकार ने दिये हैं। ... प्रद्युम्नसूरि ने अपने ग्रन्थ “ मूलशुद्धि" में इन्हीं भेदों में से अधिकांश भेदों का विवेचन किया है। तथा मूल-शुद्धि ग्रन्थ के टीकाकार देवचन्द्रसूरि ने उसे विस्तृत रूप दिया है। ग्रन्थकार ने स्वयं ही उदाहरणों में मात्र नामोल्लेख किया है। हालांकि यह पूरा ही ग्रन्थ " सम्यक्त्व” पर आधारित है। सम्यक्त्व के अन्य भेदों की अपेक्षा इसमें जो छः प्रकार के स्थान है उन पर विशेष प्रकाश डाला गया
१ सम्मत्तनाणचरणा संपुन्नो मोक्खसाहणो वाओ। ता इह जुत्तो जत्तो ससत्तिओ नायतत्ताणं ।। गाथा ६५ ॥