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________________ अभिव्यक्ति 'सम्यक्त्व' जैन दार्शनिक और धार्मिक परम्परा में एक वैशिष्टय पूर्ण महत्त्व रखता है। जैन दर्शन के मूर्धन्य आचार्य 'उमास्वाति वाचक ने जैन दार्शनिक इतिहास में मानस्तंभरूपी ग्रन्थ 'तत्त्वार्थ सूत्र' के पहले सूत्र में ही 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' कहकर सम्यक्त्व अथवा सम्यग्दर्शन को मोक्षमार्ग के सोपानों में प्राथमिकता दी है। सम्यक्त्व प्रारम्भिक अवस्था में साधकों के लिए प्रथम सोपान की तरह है और सिद्ध लोगों की अंतिम आत्म साक्षात्कार रूपी मंजिल है। जैन धार्मिक और दर्शनिक इतिहास का अवलोकन करने से हमें विदित होता है कि यह 'सम्यक्त्व' विचार ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष - रूप से चिन्तन का केन्द्र बिन्दु बनकर रहा है। डॉ. साध्वी श्री सुरेखा श्री जी महाराज ने अत्यन्त परिश्रम पूर्वक इस विषय में जैन परम्परा का प्रामाणिक और मूर्धन्य ग्रन्थों का तलस्पर्शी अध्ययन और संशोधन के आधार पर एक प्रामाणिक ग्रंथ हमारे सामने प्रस्तुत किया है। सम्यक्त्व के बारे में समग्रदृष्टि से परिपूर्ण परिचायक एक मात्र ग्रन्थ हमारे समक्ष साध्वी श्री जी ने रखा है। यह ग्रन्थ विद्वज्जनों को, संशोधकों को और तत्त्वज्ञान के विद्याथियों को बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। इस ग्रन्थ में, जहाँ ब्राह्मण · और श्रमण परम्परा की तुलना करते समय जो मूलभूत त्रुटियाँ और ब्राह्मण परम्परा का आधार ग्रन्थों का गहन अध्ययनाभाव दिखाई पड़ता है, उस भाग को छोड़कर सभी दृष्टि से अत्युत्कृष्ट है। डॉ. वाय. एस. शास्त्री कार्यकारी अध्यक्ष . १४-१-८८ लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर, अहमदाबाद-९
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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