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स्थान आध्यात्मिक धरातल पर प्रथम एवं सर्वोपरि है। जैन वाङ्गमय का प्रत्येक ग्रन्थ इस सम्यक्त्व का स्पर्श किये बिना नहीं रहता । सम्यक्त्व श्रद्धान अर्थ को बोधित करता है। वस्तु तत्त्व पर श्रद्धान, पदार्थों पर श्रद्धान । अन्य दर्शनों में जिसे श्रद्धा से अभिहित किया गया है उसे जैन दर्शन में सम्यक्त्व अर्थात् सम्यग्दर्शन रूप में. परिभाषित किया गया है। - स्वभाव से स्वाध्याय प्रेमी समाज इन तत्त्वों का अध्ययन एवं . स्वाध्याय तो करता रहा और उनका रसास्वाद भी करता रहा है । उन पर सर्वाङ्गीण अनुसन्धानात्मक असाय इस कार्य को साध्वी सुरेखा श्री ने सम्पन्न कर अद्भुत साहस का परिचय दिया है । कार्य की सर्वथा पूर्णता चाहे न हुई हो पर यह एक शुभारम्भ तो अवश्य ही है जो सर्वथा स्तुत्य है।
१९-१२-१९८७
. डॉ. गंगाधर भट्ट निर्देशक, रा. च. प्राच्य शोध संस्थान, जयपुर