________________
अध्याय २
• अब चतुर्थ अधिकार में पंचदूषण का वर्णन है-शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, परतीथिप्रशंसा और परतीर्थिकसंस्तवन ये पाँच दूषण है, अतः इनका त्याग करना चाहिये ।'
इन दोषों का स्वरूप पूर्वकथित है अतः इनका विश्लेषण यहाँ नहीं किया ।
अब पंचम अधिकार में अष्ट प्रभावकों का वर्णन किया गया है
सम्यग्दर्शन से युक्त विद्यमान आठ प्रभावक होते हैं, जो कि विशिष्ट है ऐसा सूत्र में कहा है ।'
अब इनके आठ भेदों का निरूपण करते हैं१. प्रावचनिक, २. धर्मकथिक, ३. वादी, ४. नैमित्तिक, ५. तपस्वी, ६. विद्यावान्., ७. सिद्ध, ८. कवि-ये आठ प्रभावक हैं ।
१. प्रावचनिक कालोचित, सूत्रधार, चतुर्विध संघ के वाहक और . सूरी अर्थात् आचार्य ये प्रावचनिक है । ___२. धर्मकथिक-व्याख्यान में लब्धि होने से जो भव्य जनों को प्रति
· बोधित करते हैं उनको धर्मकथिक कहा गया है ।' ३.. वादी-जो प्रमाणों में प्रवीण है, प्रतिष्ठा सम्पन्न है-लोक में ही
नहीं किन्तु राजदरबार अर्थत् पडितजनों की सभा में भी प्रतिष्ठा सम्पन्न है उसे वादी कहा गया है ।
१. दृसिज्जइ जेहि इमं, ते दोमा पंच बज्जणिज्जा उ। - संका कंख विगिच्छा परतिस्थिपसंससंथवणं । वही, गाथा २८ ॥ २. सम्मददंसणजुत्तो, सइ सामत्थे पभावगो होइ । __ सो पुण इत्थ विसिट्रो, निद्दिवो अट्टहा सुत्ते । वही, गाथा ३१ ॥ ३. पावयणी धम्मकही वाई नेमित्तिओ तपम्सी य ।। विजा सिद्धो य कवी, अट्ठेव पभावगा भणिया । वही, गाथा ३२ ॥ ४. कालोचियसुत्तधरो, पावयणी तित्थवाहगो सूरी।। पडिबोहियभव्वजणो धम्मकही कहणलद्धिल्लो ॥ वही, गाथा ३३ ॥