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________________ अध्याय २. • इस प्रकार अनेक उपमाओं के द्वारा सम्यग्दर्शन का माहात्म्य बताया है। ___श्वेताम्बर आगम ग्रन्थों के सदृश कुन्दकुन्दाचार्य ने ग्रन्थिभेद से सम्यक्त्व की उत्पत्ति, सम्यग्दर्शन के पश्चात् ही सम्यग्ज्ञान, एवं दर्शन शुद्धि से ही निर्वाण, सम्यक्त्व के भेद निश्चय एवं व्यवहार, सम्यक्त्व के निःशंकादि आठ अंग, मोहनीय कर्म ही सम्यक्त्व का अवरोधक तत्त्व है, आदि का उल्लेख अपने ग्रन्थों में किया है। (२) षट् खण्डागम (धवला टीका) दिगम्बर सम्प्रदाय में महाकर्मप्रकृतिप्राभृत (षट् खण्डागम) और कषाय प्राभृत ये दो ग्रन्थ पूर्वोद्धृत माने जाते हैं। इसके रचयिता आचार्य पुष्पदंत और भूतबलि है। षटखण्डागम के प्रारंभिक भाग सत्प्ररूपणा के प्रणेता आचार्य पुष्पदंत हैं तथा शेष समस्त ग्रन्थ के रचयिता आचार्थ भूतबलि है । आ. पुष्पदंत और भूतबलि का समय विविध प्रमाणों के आधार पर वीर-निर्वाण के पश्चात् ६०० और ७७० : वर्ष के बीच सिद्ध होता है। अर्थात् अनुमानतः विक्रम की दूसरीतीसरी शताब्दी है। इन छः खण्ठों की भाषा प्राकृत है।' इस पर अनेक व्याख्याएँ लिखी गई हैं जिस में धवला टीका वीरसेनाचार्य की प्रसिद्ध है। - ग्रन्थकार ने चौदह मार्गणाओं का वर्णन किया है, जिस में बारहवीं सम्यक्त्व नामकी मार्गणा है । अब टीकाकार उसके स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि-प्रशम, संवेग, अनुकम्पा और आस्तिक्य की प्रगटता ही जिस का लक्षण है उसको सम्यक्त्व कहते हैं। यहाँ शंकाकार शंका करते हैं कि इस प्रकार सम्यक्त्व का लक्षण मानने से . १. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ४. पृ० २८-२९ ॥ २. गइ इंदिप काए जोगे वेदे कसाए णाणे संजये दंसणे लेस्सा। भविय ...सम्मत्त सण्णि आहारए चेदि ॥ षट्खण्डागमः भाग १, पृ० १३२ ॥
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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