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________________ अध्याय पदार्थ का ज्ञान । यहाँ यह ध्यान रखना चाहिये कि सूत्र में इन दोनों का हेतु रूप से निर्देश किया है। इस पर शंकाकार शंका करते हैं इन दोनों का किसके हेतु रूप से निर्देश किया है ? तो समाधान करते हैं कि क्रिया से । पुनः कहते हैं वह कौनसी क्रिया है १ तब समाधान करते हुए पूज्यपाद कहते हैं कि " उत्पन्न होता है' यह क्रिया है । यद्यपि इसका उल्लेख सूत्र में नहीं किया गया तथापि इसका अध्याहार कर लेना चाहिये, क्योंकि सूत्र उपस्कार सहित होते हैं। इस प्रकार सम्यक्त्व की उत्पत्ति निसर्ग व अधिगम से होती है।' ___ किंतु यहाँ एक प्रश्न यह उठता है कि निसर्गज सम्यग्दर्शन नहीं बन सकता क्योंकि; तत्त्वाधिगम हुए बिना उनका श्रद्धान कैसे हो सकता है ? और यदि होता है तो वह भी अधिगमज ही हुआ उससे भिन्न नहीं। यदि नहीं होता तो जिसने पदार्थों को जाना नहीं है उसे उनका श्रद्धान कैसे हो सकता है ? . इसका समाधान करते हुए पूज्यपाद कहते हैं कि यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि दोनों सम्यग्दर्शनों में दर्शनमोहनीय का उपशम, क्षय . या क्षयोपशम रूप अन्तरंग कारण समान है। इसके रहते हुए जो बाह्य उपदेश के बिना होता है वह नसर्गिक सम्यग्दर्शन है और जो बाह्य उपदेश पूर्वक जीवादि पदार्थों के ज्ञान के निमित्त से होता है .. वह अधिगमज है। १. निसर्गः स्वभाव इत्यर्थः । अधिगमोऽर्थावबोधः। तयोर्हेतुत्वेन निर्देशः। कस्या ? क्रियाया । का च क्रिया ? उत्पद्यते इत्यध्याहियते सोपस्कार. त्वात् सूत्राणाम् । स० सि०, पृ० ९॥ २. नैष दोषः । उभयत्र सम्यग्दर्शने, अन्तरंगो हेतुस्तुल्यो दर्शनमोह स्योपशमः क्षयः क्षयोपशमो वा। तस्मिन्सति यदबाह्योपदेशादते प्रादुर्भवति तन्नैसर्गिकम् यत्परोपदेशपूर्वक जीवाद्यधिगमनिमित्तं यदुत्तरम् । स० सि०, पृ. ९॥
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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