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________________ अध्याय २ • सांख्य के अनुसार- "तत्त्वों का श्रद्धान करना नाम का यह भाव तत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण इन तीन गुणों की साम्यावस्थारूप प्रकृति का परिणाम है।" इस प्रकार सांख्यिमती स्वीकार करते हैं किन्तु इसका समाधान करते हुए विद्यानदी कहते हैं-उनका कहना प्रशंसनीय नहीं है क्योंकि ऐसा मानने पर उस प्रकृति के सर्वथा भिन्न माने गये आत्मा में सम्यक्त्व का सद्भाव नहीं हो सकता है । प्रकृति का बना हुआ श्रद्धान उससे सर्वथा भिन्न हो रहे आत्मा में सम्यग्दर्शन गुण को व्यवस्थापित नहीं कर सकता है।' इस प्रकार सांख्य मत का निरसन कर सूत्रकार तत्त्वों का उल्लेख कर रहे हैं कि वे तत्त्व कौन से हैं - “जीवाजीवास्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम् "२ अर्थात् जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये तत्त्व हैं । पूज्यपाद ने इन सात तत्त्वों का विश्लेषण व लक्षण देते हुए कहा-जीव का लक्षण चेतना है जो ज्ञानादिक के भेद से अनेक प्रकार • की है । जीव से विपरीत लक्षण वाला अजीव है। शुभ और अशुभ कर्मों के आने के द्वार रूप आस्रव है। आत्मा और कर्म-प्रदेशों का · परस्पर मिल जाना बन्ध है। आस्रव का रोकना संवर है। कर्मों का एक देश अलग होना निर्जरा है और सब कर्मों का आत्मा से अलग हो जाना मोक्ष है ।' १.. श्लो० वा०, ख० २, गा० १३, पृ० ४६ प्रधानस्य विवाऽयं श्रद्धानारव्य इतीतरे । तदसत्पुंसि सम्यक्त्वाभावासंगाततोऽपरे ॥ १३ ॥ २. त० स०, अ० १, सू० ४. ३. स० सि०, पृ० ११-तत्र चेतनालक्षणो जीव: । सा च ज्ञानादिभेदाद. नेकधा भिद्यते । तद्विपर्यय लक्षणोऽजीवः । शुभाशुभ कर्मागमद्वारस्य आस्रवः । आत्मकर्मणोरन्योऽन्य प्रदेशानुप्रवेशात्मको बन्धः । आम्रव निरोधलक्षणः संवरः। एकदेशकर्म संक्षयलक्षणा निर्जरा। कृत्स्नकर्मवियोगलक्षणो मोक्षः।
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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