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अध्याय २
रागादिक संस्कारादि उत्पन्न होते हैं । इसके कारण यह भावचक्र बराबर चलता रहता है । जब सब पदार्थों में अनित्य निरात्मक अशुचि और दुःख रूप तत्त्वज्ञान उत्पन्न होता है तब अविद्या नष्ट हो जाती है। फिर अविद्या के विनाश से क्रमशः संस्कार आदि नष्ट होकर मोक्ष प्राप्त हो जाता है।' इस तरह बौद्धमत में भी अविद्या से बन्ध और विद्या से मोक्ष माना जाता है। जैन सिद्धांत में भी मिथ्यादर्शन अविरति आदि को बंधहेतु माना गया है । पदार्थों में विपरीत अभिप्राय का होना ही मिथ्यादर्शन है और यह मिथ्यादर्शन अज्ञान से होता है अतः अज्ञान से बंधहेतु तो फलित होता है ।
जब " अज्ञान से बंध और ज्ञान से मोक्ष होना” यह सभी वादियों को निर्विवाद रूप से स्वीकृत है तब सम्यग्दर्शनादि तीन को मोक्षमार्ग मानना उपयुक्त नहीं है । इस शंका का समाधान करते हुए वार्तिककार कहते हैं कि यह शंका ठीक नहीं। क्योंकि मोक्षप्राप्ति सम्यग्दर्शन आदि तीनों के अविनाभाव से होती है । वह इसके बिना नहीं हो सकती । जैसे - मात्र रसायन के Sara ra का फल आरोग्य नहीं मिलता । के लिये रसायन का विश्वास ज्ञान और सेवन -तरह संसार व्याधि की निवृत्ति भी तत्त्वश्रद्धान ज्ञान और चारित्र से ही हो सकती है । यदि ज्ञानमात्र से ही मोक्ष माना जाय तो पूर्णज्ञान
श्रद्धान,
ज्ञान या आचरण
पूर्ण फल की प्राप्ति
आवश्यक है उसी
- १. अविद्या प्रत्ययाः संस्काराः जावजातिप्रत्ययं जरामरणमिति..... एवमादि विविधमज्ञानमियमुच्यते अविद्या ॥
बोधिचर्या० पं० पृ० ३:८; एवं शिक्षा समुच्चय पृ० २१९-२२३, माध्यमिकका पृ० ५६४ ॥
२. “मिथ्यादर्शनादेरिति मतं भवताम्" । ४७ । " मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः" त० सृ० ८-१ इति भवतामार्हतानामपि मतम् । पदार्थविपरीताभिनिवेशश्रद्धानं मिथ्यादर्शनं, विपरीताभिनिवेशश्च मोहात्, मोहश्चाज्ञानमित्यज्ञानाद् बन्धः । अतो मिथ्यादर्शनमादिबन्धस्य || रा० वा०, पृ० १३ ॥