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सम्बन्ध कृदन्त :
नि. १५. : जब कर्ता एक कार्य को समाप्त कर दूसरा कार्य करता है तो पहले किये गये कार्य के लिए सम्बन्ध कृदन्त का व्यवहार होता है 1
नि. १६. : क्रिया से सम्बन्ध कृदन्त रूप बनाने के लिए प्राकृत में तुं, तूण आदि आठ. प्रत्यय लगते हैं। यहाँ केवल 'तूण' प्रत्यय प्रयुक्त हुआ है (ऊण) प्रत्यय लगाने के पूर्व क्रियाओं के 'अ' को 'इ' हो जाता 1
। तण
यथा
पास + इ + ऊण = पासिऊण (देखकर) नि. १७. : आ, ए एवं ओकारान्त क्रियाओं में 'ऊण' प्रत्यय हैं। यथा-दा + ऊण = दाऊण, णे + ऊण होऊण ।
हेत्वर्थ कृदन्त :
नि. १८. : जब कर्ता किसी अभीष्ट कार्य के लिए कोई दूसरी क्रिया करता है तो वहाँ अभीष्ट कार्य को सूचित करने के लिए हेत्वर्थ कृदन्त का प्रयोग होता है।
नि. १९. : इस अभीष्ट कार्य वाली क्रिया में तुं (उं) प्रत्यय जुड़ जाता है, तथा अकारान्त क्रियाओं के 'अ' को 'इ' हो जाता है । यथा
निर्देश :
मूल क्रिया
पास
गच्छ
सुण
पास् + इ + उं = पासिउं (देखने के लिए)।
उपर्युक्त पाठों के क्रिया-कोश में आपने जो नयी क्रियाएँ सीखी हैं, उनके विभिन्न कालों में रूप लिखिए और उनका एक चार्ट बनाइये । यथा
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क्रियाओं का परिचय दीजिए :
पढिहि
भुंजउ
मऊण
व.
पासइ
हसि
जंपहि
कीणित्था
पढमु
भू. पासीअ
लगाकर रूप बनाये जाते
=
= णेऊण हो + ऊण =
भवि.
मूल क्रिया
पढ
पासिहिइ
आज्ञा स.कृ. हे. कृ
पासउ
काल पुरुष भविष्य अन्य पुरुष
पासिऊण पासिउं
वचन एक वचन
प्राकृत स्वयं-शिक्षक