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आशा है इस नवीन संस्करण के माध्यम से प्राकृत भाषा को सीखने और समझने की दिशा को गति मिलेगी तथा सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के समान अन्य विश्वविद्यालयों में भी इस भाषा के पठन-पाठन का कार्यक्रम प्रारम्भ किया जाएगा, जिससे कि इस भाषा में निबंद्ध साहित्य अधिक से अधिक प्रकाश में आ सकेगा। ... प्रस्तुत संस्करण के मुद्रण में इस संस्थान के निदेशक एवं जैन साहित्य के विशिष्ट विद्वान् साहित्य वाचस्पति महोपाध्याय श्री विनयसागर जी तथा सदस्य श्री ओंकारलालजी मेनारिया ने मनोयोग पूर्वक कार्य किया उसके लिये संस्थान उनका भी आभारी है।
साहित्य-वाचस्पति म. विनयसागर
निदेशक, + प्राकृत भारती अकादमी
जयपुर
देवेन्द्रराज मेहता प्राकृत भारती अकादमी
जयपुर
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