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________________ प्रकाशकीय प्राकृत भाषा एवं साहित्य के महत्वपूर्ण ग्रंथों का प्रकाशन एवं प्राकृत भाषा का प्रचार तथा प्रसार प्राकृत भारती अकादमी का प्रमुख उद्देश्य है। इसी दिशा में प्राकृत स्वयं - शिक्षक खण्ड १ का इस संस्थान की तरफ से प्रकाशन करने में अत्यधिक प्रसन्नता है। प्रोफेसर जैन प्राकृत के प्रमुख विद्वान् हैं। इस क्षेत्र में उनके विस्तृत ज्ञान एवं अनुभव का लाभ प्राकृत के पाठकों को उपलब्ध होगा। उन्होंने प्राकृत के सीखने-सिखाने में एक वैज्ञानिक एवं नवीनतम शैली का प्रयोग इस पुस्तक में किया । साधारणतया प्राकृत, संस्कृत की मदद से सीखी - सिखाई जाती रही है । इस पुस्तक की विशेषता यह है कि सामान्य हिन्दी जानने वाला पाठक भी बिना किसी कठिनाई के प्राकृत स्वयं सीख सकता है। नई प्रणाली के उपरान्त भी लेखक ने प्राकृत व्याकरण की परम्परा को पृष्ठभूमि में बनाये रखा है। इस तरह संस्थान का उद्देश्य एवं पाठकों की उपयोगिता के संदर्भ में यह एक बहुत ही समसामयिक प्रकाशन कहा जा सकता है। संस्थान इस पुस्तक के लेखक के प्रति विशेष आभार प्रकट करता है कि प्राकृत के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी कमी को उन्होंने यह पुस्तक लिखकर पूरा. किया है। प्रस्तुत पुस्तक की प्रथमावृत्ति सन् १९७६ में प्रकाशित की गई थी किन्तु अल्पकाल ही में इसकी समस्त प्रतियाँ बिक गईं और जैन साधु समाज तथा सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के छात्रों व अन्य पाठकों की मांग इसके लिए नियमित रूप से बनी रही, अतः संस्थान द्वारा १६८२ में इनका पुनमुद्रण किया, किन्तु यह संस्करण भी शीघ्र ही बिक गया। अब इस बहु उपयोगी पुस्तक का तृतीय • संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। पुस्तक को और अधिक उपयोगी बनाने के लिये इसके लेखक प्रोफेसर प्रेम सुमन जैन ने 'प्राकृत भाषा : स्वरूप एवं विकास' पर एक आलोचनात्मक लेख और प्राकृत के प्रमुख वैयाकरणों का संक्षिप्त परिचय इस संस्करण में और जोड़ दिया है। [iii]
SR No.002253
Book TitlePrakrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1998
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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