________________
द्वितीयपाद के २१८ सूत्रों में संयुक्त व्यंजनों के परिवर्तन, समीकरण, स्वर भक्ति, वर्णविपर्यय, शब्दादेश, तद्धित, निपात और अव्ययों का निरूपण है। यह प्रकरण आधुनिक भाषाविज्ञान की दृष्टि से बहुत उपयोगी है। हेमचंद्र ने संस्कृत के कई द्व्यर्थ वाले शब्दों को प्राकृत में अलग- अलग किया है, ताकि भ्रान्तियाँ न हों । संस्कृत अर्थ समय भी है और उत्सव भी । हेमचन्द्र ने उत्सव अर्थ में छणो (क्षण:) और समय अर्थ में खणो (क्षणः) रूप निर्दिष्ट किये हैं । इसी तरह हेम ने अव्ययों की भी विस्तृत सूची इस पाद में दी है।
क्षण शब्द का
तृतीयपाद में १८२ सूत्र हैं, जिनमें कारक, विभक्तियों, क्रियारचना आदि सम्बन्धी नियमों का कथन किया गया है। शब्दरूप क्रियारूप और कृत प्रत्ययों का वर्णन विशेष रूप से ध्यातव्य है । वैसे प्राकृतप्रकाश के समान ही इसका विवेचन हेम ने किया है, कारक व्यवस्था पर अच्छा प्रकाश डाला है। हेमप्राकृत व्याकरण का चतुर्थ पाद विशेष महत्त्वपूर्ण है । इसके ४४८ सूत्रों में शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका पैशाची और अपभ्रंश प्राकृतों का शब्दानुशासन प्रन्थकार ने किया है। इस पाद में धात्वादेश की प्रमुखता है । संस्कृत धातुओं पर देशी अपभ्रंश धातुओं का आदेश किया है । यथा-संस्कृत कथ्, प्राकृत-कह को बोल्ल, चव, जंप आदि आदेश ।
मागधी, शौरसेनी एवं पैशाची का अनुशासन तो प्राचीन वैयाकरणों ने भी संक्षेप में किया था। हैम ने इनको विस्तार से समझाया है। किन्तु इसके साथ ही चूलिका पैशाची की विशेषताएं भी स्पष्ट की हैं। इस पाद के ३२९ सूत्र से ४४८ सूत्र तक उन्होंने अपभ्रंश व्याकरण पर पहली बार प्रकाश डाला हैं। उदाहरणों के लिए जो अपभ्रंश के दोहे दिये हैं, वे अपभ्रंश साहित्य की अमूल्यनिधि हैं। आचार्य हेम के समय तक प्राकृत भाषा का बहुत अधिक विकास हो गया था । इस भाषा का विशाल साहित्य भी था । अपभ्रंश के
भिन्न रूप प्रचलित थे । अतः हेमचंद्र ने प्राचीन वैयाकरणों के ग्रन्थों का उपयोग करते हुए भी अपने व्याकरण में बहुत-सी बातें नयी और विशिष्ट शैली में प्रस्तुत की हैं। . आचार्य हेमचंद्र ने अपने प्राकृतव्याकरण पर " तत्त्वप्रकाशिका ” नाम सुबोध - वृत्ति (बृहत्वृत्ति) भी लिखी है। मूलग्रंथ को समझने के लिए यह वृत्ति बहुत उपयोगी है इसमें . अनेक ग्रंथों से उदाहरण दिये गये हैं । एक लघुवृत्ति भी हेमचंद्र ने लिखी है, जिसको “प्रकाशिका” भी कहा गया है । यह सं. १९२९ में बम्बई से प्रकाशित हुई है। हेमप्राकृतव्याकरण पर अन्य विद्वानों द्वारा भी टीकाएं लिखी गई हैं।
(५) पुरुषोत्तम - प्राकृतानुशासन :
हेमचंद्र के समकालीन एक और प्राकृत वैयाकरण हुए हैं पुरुषोत्तम । ये बंगाल के निवासी थे । अतः इन्होंने प्राकृत व्याकरणशास्त्र की पूर्वीय शाखा का प्रतिनिधित्व किया है। पुरुषोतम १२वीं शताब्दी के वैयाकरण हैं। उन्होंने प्राकृतानुशासन नाम का प्राकृत व्याकरण लिखा है। यह ग्रंथ १९३८ में पेरिस से प्रकाशित हुआ है। एल. नित्ती डौल्ची
[ २५ ]