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________________ ५. उपर्युक्त प्रक्रिया से जब विद्यार्थी प्राकृत व्याकरण के प्रायः सभी नियमों एवं प्रयोगों से परिचित हो जाय तब उसके इस विस्तृत ज्ञान का व्याकरण के सूत्रों के माध्यम से संक्षेपीकरण करना है। इससे वह व्याकरण की सम्पूर्ण प्रक्रिया को सूत्र-संकेतों के माध्यम से प्रयोग करने में सक्षम होगा। इस पद्धति से छात्र को सूत्र-ज्ञान की उपयोगिता ज्ञात होगी। फलस्वरूप सूत्र उसे स्वयं ही कण्ठस्थ हो जावेंगे; क्योंकि सूत्रों में समाये हुए सभी कार्यों का वह बहुत प्रयोग कर चुका है। ऐसे विद्यार्थी के लिए शिक्षक को सूत्रों का ज्ञान नई पद्धति, चार्ट आदि के द्वारा कराना होगा। यथा-उसे बताना होगा कि सूत्र का निर्माण कैसे हुआ है? उसमें संधि, समास आदि क्या है ? सूत्र में व्याकरण के किन प्रत्ययों और विभक्तियों का संकेत है? तथा वह सूत्र आगे-पीछे व्याकरण-ज्ञान में कहाँ-कहाँ. काम आता है? इत्यादि। प्राकृत शिक्षण के इन सोपानों को यदि प्रारम्भिक कक्षाओं में सावधानी और परिश्रम पूर्वक अपनाया गया तो प्राकृत भाषा के विकास के लिए इससे दूरगामी एवं सार्थक परिणाम सामने आयेंगे। तब प्राकृत भाषा कई घेरों को छोड़कर उस जन-समुदाय के पास पहुंच सकेगी, जहाँ वह शताब्दियों तक व्याप्त और समादृत रही है। प्राकृत भाषा: के पठन-पाठन से प्राकृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं का ज्ञान रखने वाले एक ऐसे उत्साही समाज का सृजन होगा जो भारतीय संस्कृति की समन्वयात्मक छवि को उजागर करेगा एवं :. ग्रन्थ भण्डारों में छिपी देश की अमूल्य सम्पदा को विश्व के सामने प्रकट कर सकेगा। प्राकृत के एक कवि का यह कथन प्राकृत भाषा के महत्त्व को प्रकट कर देता है। पर-उवयार-परेणं सा भासा होई एत्य भणियव्वा। . जायइ जाए विबोहो सव्वाण वि बालमाइणं ॥ (परोपकार में तत्पर लोगों के द्वारा इस (संसार) में वह भाषा पढ़ने योग्य होती है, जिसके द्वारा सभी (विद्वानों) के लिए एवं अल्पबुद्धि वालों के लिए भी ज्ञान प्राप्त होता है। १. “प्राकृत शिक्षण की दिशाएँ”–प्राकृत शिक्षण की अन्य दिशाओं के लिए इस लेख को विस्तार से देखें। [२०]
SR No.002253
Book TitlePrakrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1998
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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