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________________ संदर्भ | संज्ञा | मूल | अर्थ | विशे. मूल | अर्थ | कृदन्त | मूल | अर्थ | क्रिया | मूल | अर्थ | सर्वनाम | मूल अर्थ अव्यय अर्थ संधि एवं समास [१९] समास) तत्त गाथा पाइअ- पागय प्राकृत | अमय | अमय अमृत पढिउं | पढ पढ़ना |आणं- आण जानना जे स तंती = कव्वं कव्व काव्य (द्वि. (सक) . ति (सक) (प्रबव) । तत्ततंती सप्तशती (द्वि. (नप) त त(पु) वे कह क्यों (षष्ठी तत्पुरुष ए.व) सोउं सुअ सुनना ब. व) (प्रबव) ।२ कामस्स काम सुन्दर ण नहीं पाइअस्स कव्वं (अनि पाइय-कव्वं यमित) (ष. त. पु. कुणंति कुण करना समास) (अपु) (सक) ए. व) तंती चिन्ता लज्ज- लज्ज लज्जा तन्ति (स्त्री) (चर्चा) ति (अक) करना (अपु) विशेष-'पाइअ' यद्यपि विशेषण है, किन्तु भाषा, व्याकरण एवं काव्य के साथ प्रयुक्त होने पर पाइअ को संज्ञा माना गया है।
SR No.002253
Book TitlePrakrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1998
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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