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________________ दिया जाय। इससे छात्र व्याकरण का अभ्यास साहित्य-पठन में ही करता चलेगा। इस प्रक्रिया में समय अधिक लग सकता है। अत: पाठ्यक्रम में पाठों की संख्या कम रखी जा सकती है, किन्तु जितने भी पाठ पढ़ाये जाँय, वे भाषाज्ञान को बढ़ाने वाले हों, इस पर जोर दिया जाय। भाषा सीख लेने पर छात्र साहित्य को स्वयं पढ़ने का प्रयत्न कर सकता है। ४. साहित्य-शिक्षण में भाषा-विश्लेषण के लिए भी चार्टों का प्रयोग किया जा सकता है। चार्ट का स्वरूप निम्न प्रकार का हो सकता है। इस चार्ट द्वारा विद्यार्थी स्वयं शब्दकोष के माध्यम से प्राकृत गाथाओं या गद्यांशों का विश्लेषण कर ले या उसे शिक्षक द्रारा करा दिया जाय तो छात्र का व्याकरण ज्ञान पुष्ट हो जायेगा। .. भाषा-विश्लेषण के इस चार्ट का प्रयोग जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग, उदयपुर विश्वविद्यालय, में शोध-कार्यों एवं प्राकृत-अध्ययन के लिए किया जा रहा है। उसके अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं। इन चार्टों को भरने वाला शिक्षार्थी तो लाभान्वित होता ही है, साथ ही वह चार्ट आगे के अध्येताओं के लिए भी भाषा-शिक्षण के रिकार्ड के रूप में काम आता है। इससे प्राकृत भाषा के विभिन्न प्रयोगों से सम्बन्धित निष्कर्ष निकालने में भी मदद मिलती है। पठनीय गाथा है अमयं पाइयकव्वं पढ़िउं सोउं अ जे ण आणंति । कामस्स तत्ततन्ति कुणंति ते कहं ण लज्जत्ति ॥ इसका विश्लेषण चार्ट में इस प्रकार किया जायेगा :-- १. “प्राकृत शिक्षण की दिशाएँ”–पूर्वोक्त लेख में दिया हुआ चार्ट [१८]
SR No.002253
Book TitlePrakrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1998
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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