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________________ प्राणानां साधु अनारम्भो, अपव्ययता अपभाण्डता साधु । (तृतीय शिलालेख) (प्राणियों के लिए की गयी अहिंसा अच्छी है, थोड़ा खर्च और थोड़ा संग्रह अच्छा सव पासंडा बहुसुता च असु, कल्याणागमा च असु । (द्वादश शिलालेख) (सभी धार्मिक सम्प्रदाय (एक दूसरे को ) सुनने वाले हों और कल्याण का कार्य करने वाले हों।) सम्राट अशोक के बाद लगभग ईसा की चौथी शताब्दी तक प्राकृत में शिलालेख लिखे जाते रहे हैं, जिनकी संख्या लगभग दो हजार है। खारवेल का हाथी गुफा शिलालेख उदयगिरि एवं खण्डगिरि के शिलालेख तथा आन्ध्र राजाओं के प्राकृत शिलालेख साहित्यिक और इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। प्राकृत भाषा के कई रूप इनमें उपलब्ध हैं। खारवेल के शिलालेख में उपलब्ध नमो अरहंतानं नमो सवसिधानं. पंक्ति में प्राकृत के नमस्कार मंत्र का प्राचीन रूप प्राप्त होता है। सरलीकरण की प्रवृत्ति का भी ज्ञान होता है। भारतवर्ष (भरधवस) शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख इसी शिलालेख की दशवीं पंक्ति में मिलता है। इस तरह प्राकृत के शिलालेख भारत के सांस्कृतिक इतिहास के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रदान करते हैं। . . ३. निया प्राकृत प्राकृत भाषा का प्रयोग भारत के पड़ोसी प्रान्तों में भी बढ़ गया था। इस बात का पता निय प्रदेश (चीनी, तुर्किस्तान) से प्राप्त लेखों की भाषा से चलता है, जो प्राकृत भाषा से मिलती-जुलती है। निया प्राकृत का अध्ययन डॉ. सुकुमार सेन ने किया है, जिससे ज्ञात होता है कि इन लेखों की प्राकृत भाषा का सम्बन्ध दरदी वर्ग की तोखारी भाषा के साथ है। अतः प्राकृत भाषा में इतनी लोच और सरलता है कि वह देश-विदेश की किसी भी भाषा से अपना सम्बन्ध जोड़ सकती है। ४. धम्मपद की प्राकृत भाषा . पालि भाषा में लिखा हुआ धम्मपद प्रसिद्ध है। किन्तु प्राकृत भाषा में लिखा हुआ एक और धम्मपद भी प्राप्त हुआ है, जिसे बी. एम. बरुआ और एस. मित्रा ने सन् १९२१ में कलकत्ता से प्रकाशित किया है। यह खरोष्ठी लिपि में लिखा गया था। इसकी प्राकृत का सम्बन्ध पैशाची आदि प्राकृत से है। ५. अश्वघोष के नाटकों की प्राकृत। __ आदि युग की प्राकृत भाषा का प्रतिनिधित्व लगभग प्रथम शताब्दी के नाटककार अश्वघोष के नाटकों की प्राकृत भाषा भी करती है। अर्धमागधी, शौरसेनी और मागधी १. द्रष्टव्य-पालि प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं का व्याकरण-डॉ. सुकुमार सेन २. ए कम्पेरेटिव ग्रामर ऑफ मिडिल इन्डोआर्यन-डॉ. सेन ३. प्राकृत भारती के पुष्प-७० के रूप में सन् १९९० में प्रकाशित हो चुका है। [१०]
SR No.002253
Book TitlePrakrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1998
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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