________________
प्राकृत की विशेषताएँ इन नाटकों में प्राप्त होती हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि इस युग में प्राकृत भाषा का प्रयोग क्रमशः बढ़ रहा था और आगम ग्रन्थों की भाषा कुछ-कुछ नया स्वरूप ग्रहण कर रही थी। मध्ययुग
ईसा की दूसरी से छठी शताब्दी तक प्राकृत भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता रहा। अतः इसे प्राकृत भाषा और साहित्य का समृद्ध युग कहा जा सकता है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में इस समय प्राकृत का प्रयोग होने लगा था। महाकवि भास ने अपने नाटकों में प्राकृत को प्रमुख स्थान दिया। कालिदास ने पात्रों के अनुसार प्राकृत भाषाओं के प्रयोग को महत्त्व दिया। इसी युग के नाटककार शूद्रक ने विभिन्न प्राकृतों का परिचय कराने के उद्देश्य से मृच्छकटिक प्रकरण की रचना की। यह लोकजीवन का प्रतिनिधि नाटक है, अतः उसमें प्राकृत के प्रयोगों में भी विविधता है।
इसी युग में प्राकृत में कथा, चरित, पुराण एवं महाकाव्य आदि विधाओं में ग्रन्थ लिखे गये। उनमें जिस प्राकृत का प्रयोग हुआ उसे सामान्य प्राकृत कहा जा सकता है, क्योंकि तब तक प्राकृत ने एक निश्चित स्वरूप प्राप्त कर लिया था, जो काव्य-लेखन के लिए आवश्यक था। प्राकृत के इस साहित्यिक स्वरूप को महाराष्ट्री प्राकृत कहा गया है। इसी युग में गुणाढ्य ने बृहत्कथा नामक कथा-ग्रन्थ प्राकृत में लिखा, जिसकी भाषा पैशाची कही गयी है। इस तरह इस युग के साहित्य में प्रमुख
रूप से जिन तीनं प्राकृत भाषाओं का प्रयोग हुआ है वे हैं-१. महाराष्ट्री. २. मागधी .: और ३. पैशाची। इन तीनों माकृतों का स्वरूप प्राकृत के वैयाकरणों ने अपने
व्याकरण-ग्रन्थों में स्पष्ट किया है। (क) महाराष्ट्री प्राकृत • जिस प्रकार स्थान भेद के कारण शौरसेनी आदि प्राकृतों को नाम दिये जाते हैं उंसी तरह महाराष्ट्र प्रान्त की जनबोली से विकसित प्राकृत का नाम महाराष्ट्री प्रचलित हुआ है। इसने मराठी भाषा के विकास में भी योगदान किया है। महाराष्ट्री प्राकृत के वर्ण अधिक कोमल और मधुर प्रतीत होते हैं, अत: इस प्राकृत का काव्य में सर्वाधिक प्रयोग हुआ है। ईसा की प्रथम शताब्दी से वर्तमान युग तक इस प्राकृत में ग्रन्थ लिखे जाते रहे हैं। प्राकृत वैयाकरणों ने भी महाराष्ट्री प्राकृत के लक्षण लिखकर अन्य प्राकृतों की केवल
विशेषताएँ गिना दी हैं। - (ख) मागधी
मगध प्रदेश की जनबोली को सामान्य तौर पर मागधी प्राकृत कहा गया है। .. - मागधी कुछ समय तक राजभाषा थी, अतः इसका सम्पर्क भारत की कई बोलियों के साथ
हुआ। इसीलिए पालि अर्धमागधी आदि प्राकृतों के विकास में मागधी प्राकृत को मूल माना जाता है। इसमें कई लोक-भाषाओं का समावेश था। मागधी का प्रयोग अशोक के
[११]