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________________ भावार्थ : स्वयं के संयमरूपी यश की सुरक्षा रखनेवाले मुनि को ससाक्षी अर्थात् केवलज्ञानी भगवंत ने निषेध किया हुआ जवपिष्टादि की मदिरा, महुआ की मदिरा और अन्य किसी प्रकार का मादक रस पीना नहीं। जो कोई साधु जिनाज्ञा का चोर होकर, मुझे कोई नहीं जानता है, ऐसा सोचकर / मानकर, एकान्त स्थल में मदिरा पान करता है। उपलक्षण से आगम में निषिध व्यवहार से निषिध पदार्थों का सेवन करता है । (हे शिष्यों! मैं तुम्हें) उसके दोष एवं उनके द्वारा की हुई माया का किस्सा सुनाता हूं। उसे श्रवण करो। मदिरापान कर्ता मुनि की आसक्ति की वृद्धि होती है। पूछने पर मैंने मदिरापान नहीं किया ऐसा असत्य बोलता है जिससे उसे माया मृषावाद का पाप लगता है। स्वपक्ष श्रमणसंघ, परपक्ष गृहस्थादि में अपयश फैलता है। कभी-कभी मदिरादि न मिले तो अतृप्ति रहती है चारित्र में विशेष विराधना होने से लोगों में निरंतर असाधुता का प्रसार/ प्रचार होता है। जैसे चोर स्वकर्म से सदा उद्विग्न रहता है वैसे वह संक्लिष्ट चित्तयुक्त दुर्मति साधु मरणान्त तक भी संवर की आराधना नहीं कर सकता। ऐसा साधु दुराचारी होने से वह आचार्यादि की, बाल, ग्लान आदि साधुओं की सेवादि नहीं कर सकता। और गृहस्थ लोग भी उसकी निंदा करते हैं, कारण कि उसके आचार को वे जानते हैं। इसलिए अवगुण के स्थान को देखनेवाला, गुण के स्थान का वर्जक क्लिष्ट चित्तयुक्त मरणान्त तक तपस्वी, मदरहित ऐसे साधुओं को स्निग्ध घृतादि से युक्त प्रणित आहार एवं मदिरापानादि प्रमाद का त्यागकर तपश्चर्या करनी चाहिए ।।३६-४२ ।। आचार पालन के लाभ : तस्स परसह कल्लाणं, अणेगसाहुपूइअं । विउलं अत्यसंजुत्तं, कित्तइस्सं सुणेह मे ॥ ४३ ॥ एवं तु सगुणप्पेही, अगुणाणं च विवज्जर। तारिसी मरणंतेऽवि, आराहेइ [अ] संवरं ||४४ || आयरिए आराहेइ, समणे आणि तारिसे । गिहत्थावि णं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं ||४५ || सं.छा.ः तस्य पश्यत कल्याणं, अनेकसाधुपूजितम् । विपुलमर्थसंयुक्तं, कीर्तयिष्ये शृणुत मे ||४३|| एवं तु स गुणप्रेक्षी, अगुणानां च विवर्जकः । तादृशो मरणान्तेऽपि, आराधयति संवरम् ॥४४॥। आचार्यानाराधयति, श्रमणांश्चापि तादृशः । श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 86
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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