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________________ पक्खोडिज्जा) बार-बार झटके नहीं (न आयाविन्जा) एक बार तपावे नहीं (न पयाविज्जा) बार-बार तपावे नहीं (अन्न) दूसरों के पास (न आमुसाविज्जा) पूंछावे नहीं (न संफुसाविज्जा) छुआवे नहीं (न आवीलाविज्जा) एक बार पीड़ा दिलवाएं नहीं (न पविलाविज्जा) बार-बार पीड़ा दिलवाएं नहीं (न अक्खोडाविज्जा) एक बार झटकाएँ नहीं (न पक्खोडाविज्जा) बार-बार झडकारें नहीं (न आयाविज्जा)एक बार तपवाऐं नहीं (न पयाविज्जा) बार-बार तपवाऐं नहीं (अन्न) दूसरों को (आमुसंतं वा) पूंछते हुए अथवा (संफुसंतं वा) छूते हुए अथवा (आवीलंतं वा) एक बार पीड़ा देते हुए अथवा (पवीलंतं वा) बार-बार पीड़ा देते हुए अथवा (अक्खोडतं वा) एक बार झटकते हुए अथवा (पक्खोडंतं वा) बार-बार झटकते हुए अथवा (आयावंतं वा) एक बार तपाते हुए अथवा (पयावंतं वा) बार-बार तपाते हुए (न समणुजाणामि) अच्छा समझे नहीं ऐसा भगवान् ने कहा, अतएव मैं (जावज्जीवाए) जीवन पर्यन्त (तिविह) कृत,कारित, अनुमोदित रूप, अप्कायिक त्रिविध-हिंसा को (मणेणं) मन (वायाए) वचन (काएणं) काया रूप (तिविहेण) तीन योग से (न करेमि) नहीं करूं, (न कारवेमि) नहीं कराऊं, (करंत) करते हुए (अन्नं पि) दूसरों को भी (न समणुजाणामि) अच्छा नहीं समझू (भंते!) हे प्रभो! (तस्स) भूतकाल में की गयी हिंसा की (पडिक्कमामि) प्रतिक्रमण रूप आलोयणा करता. हूँ (निंदामि) आत्म-साक्षी से निंदा करता हूँ (गरिहामि) गुरु-साक्षी से गर्दा करता हूँ (अप्पाणं) अप्काय की हिंसा करनेवाली आत्मा का (वोसिरामि) त्याग करता हूँ। तेउकाय की रक्षा : से भिक्ख वा भिक्खणी वा संजयविरय-पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे दिआ वा राओ वा एगो वा परिसागओ वा, सुते वा जागरमाणे वा से' अगणिं वा इंगालं वा मुम्मुरं वा अच्चिं वा जालं वा अलायं वा सुद्धागणिं वा उक्त वा न उंजेज्जा न घटेज्जा न भिंदेज्जा न उज्जालेज्जा न पज्जालेज्जा न निव्वावेज्जा अन्नं न उंजावेज्जा न घटावेज्जा न भिंदाविज्जा, न उज्जालाविज्जा न पज्जालाविज्जा न निव्वाविज्जा अन्नं उंजंतं वा घट्टतं वा भिंदंतं वा उज्जालंतं वा पज्जालंतं वा निव्वावंतं वा न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते! पडिकमामि निंदामि गरिहामि . अप्पाणं वोसिरामि ||३|| (सू.१२) सं.छा.ः स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा संयतविरत-प्रतिहतप्रत्याख्यात-पापकर्मा श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 36
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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