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________________ अक्खोडाविज्जा न पक्खोडाविज्जा, न आयाविज्जा न 'पयाविज्जा, अन्नं आमुसंतं वा संफुसंतं वा आवीलंतं वा पवीलंतं वा, अक्खोडतं वा पक्खाडंतं वा आयावंतं वा पयावंतं वा, न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए कारणं, न करेमि न कारवेमि करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ||२।। (सू.११) सं.छा.ः स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा संयतविरतप्रतिहतप्रत्याख्यातपापकर्मा दिवा वा रात्रौ वा एको वा परिषद्गतो वा सुप्तो वा जाग्रद्वा स उदकं वा ऽवश्यायं वा हिमं वा महिकां वा करकां वा हरितनुकं वा शुद्धोदकं वा उदकाई कायमुदकाई वा वस्त्रं सस्निग्धं वा कार्य सस्निग्धं वा वस्त्रं नामृशेन्न संस्पृशेन्नापीडयेन्न प्रपीडयेन् नास्फोटयेन्नातापयेन्न प्रतापयेदत्यं नामर्शयेन्न संस्पर्शयेन्नापीडयेन्न प्रपीडयेन्नास्फोटयेन् न प्रस्फोटयेन्नातापयेन्न प्रतापयेदन्यं आमृशन्तं वा संस्पृशन्तं वाऽऽपीडयन्तं वा प्रपीडयन्तं वाऽऽस्फोटयन्तं वाऽऽतापयन्तं वा प्रतापयन्तं वा न समनुजानामि यावज्जीवं त्रिविधं त्रिविधेन मनसा वाचा कायैन न करोमि न कारयामि कुर्वन्तमप्यन्यं न समनुजानामि तस्य भदन्त! प्रतिक्रामामि निन्दामि गर्हाम्यात्मानं व्युत्सृजामि ।।२।। (सू.११) शब्दार्थ- (से) पूर्वोक्त पंचमहाव्रतों के धारक (संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे) संयम युक्त, विविध तपस्याओं में लगे हुए और प्रत्याख्यान से पापकर्मों को नष्ट करनेवाले (भिक्खू वा) साधु अथवा (भिक्खूणी वा) साध्वी (दिआ वा) दिवस में, अथवा (राओ वा) रात्रि में, अथवा (एगओ वा) अकेले, अथवा (परिसागओ वा) सभा में; अथवा (सुत्ते वा) सोते हुए, अथवा (जागरमाणे) जागते हुए (वा) और भी कोई अवस्था में (से) अप्कायिक जीवों की जयणा इस प्रकार करे कि (उदगं वा) वावडी, कुआ आदि केजल (ओस वा) ओस का जल (हिमं वा) बर्फ काजल (महियं वा) ●अर का जल (करगं वा) ओरा का जल (हरितणुगं वा) वनस्पति पर रहे हुए जल के कण (सुद्धोदगं वा) बारीश का जल (उदउल्लं वा) जल से भींजी हुई काया (उदउल्लं वा वत्थं)जल से भीजे हुए वस्त्र आदि (ससणिद्धं वा कायं) जलबिन्दुरहित भीजी हुई काया (ससणिद्धं वा वत्थं) जलबिन्दु रहित भींजे हुए वस्त्र आदि अप्काय को (न आमुसेज्जा) पूंछे नहीं (न संफुसेज्जा) छूए नहीं (न आवीलिज्जा) एक बार पीड़ा देवे नहीं (न पविलिज्जा) बार-बार पीड़ा देवे नहीं (न अक्खोडिज्जा) एक बार झटके नहीं (न श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 35
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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