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________________ भी (न समणुजाणेज्जा) अच्छा समझे नहीं, ऐसा जिनेश्वरों ने कहा। इसलिए (जावज्जीवाए) जीवन पर्यंत (तिविह) कृत कारित अनुमोदित रूप त्रिविध परिग्रह का ग्रहण (मणेणं) मन (वायाए) वचन (कारण) काया रूप (तिविहेणं) तीन योग से (न करेमि) नहीं करता हूँ (न कारवेमि) कराऊं नहीं (करंत) करते हुए (अन्नंपि) दूसरे को भी (न समणुजाणामि) अच्छा समझू नहीं (भंते!) हे प्रभो! (तस्स) भूतकाल में ग्रहण किये गये परिग्रह की (पडिक्कमामि) प्रतिक्रमण रूप आलोयणा करता हूँ (निंदामि) आत्म-साक्षी से निंदा करता हूं (गरिहामि) गुरु-साक्षी से गर्दा करता हूँ (अप्पाणं) परिग्रहग्राही आत्मा का (वोसिरामि) त्याग करता हूँ (भंते!) हे गुरो! (पंचमे) पांचवें (महव्वए) महाव्रत में (सव्वाओ) समस्त (परिग्गहाओ) परिग्रह से (वेरमणं) अलग होने को (उवट्ठिओमि) उपस्थित हुआ हूँ। छडे व्रत की प्रतिज्ञा . अहावरे छठे भंते! वए सइभोयणाओ वेरमणं, सव्वं भंते! राइभोयणं पच्चक्खामि, से असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा नेव सयं राई भुंजिज्जा, नेवऽन्जेहिं राई भुंजाविज्जा राइं भुंजते वि अन्ने न समणुजाणामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतंपि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि! छठे भंते! वर उवडिओमि,, सव्वाओ राइभोयणाओ वेरमणं ||६|| .: (सू.८) . . . सं.छा.ः अथापरस्मिन् षष्ठे भदन्त! व्रते रात्रिभोजनाद्विरमणं सर्वं भदन्त! रात्रिभोजनं प्रत्याख्यामि. तद्यथा-अशनं वा पानं वा खाद्यं वा स्वाद्यं वा नैव स्वयं रात्रौ भुझे नैवाऽन्यः रात्रौ भोजयामि रात्रौ भुञ्जानानप्यन्यान्न समनुजानामि यावज्जीवं, त्रिविधं त्रिविधेन मनसा वाचा कायेन न करोमि न कारयामि कुर्वन्तमप्यन्यं न समनुजानामि तस्य भदन्त! प्रतिक्रामामि निन्दामि गर्हाम्यात्मानं व्युत्सृजामि षष्ठे भदन्त! व्रते उपस्थितोऽस्मि सर्वतः रात्रिभोजना द्विरमणम् ।।६।। (सू.८) शब्दार्थ - (अह) इसके बाद! (भंते!) हे गुरु! (अवरे) आगे के (छठे) छठवें (वए) व्रत में (राईभोयणाओ) रात्री-भोजन से (वेरमणं) अलग होना जिनश्वरों ने फरमाया है, अतएव (भंते!) हे प्रभो! (सव्वं) समस्त (राइभोयणं) रात्रि-भोजन का (पच्चक्खामि) मैं प्रत्याख्यान करता हूँ (से) वह (असणं वा') पकाया हुआ अन्न आदि (पाणं वा) १. 'वा' शब्द से अशन, पान, खादिम, स्वादिम के अवांतर तज्जातीय भेदों को भी ग्रहण करना चाहिए। श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 31
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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