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________________ (अप्पाणं) मैथुनसेवी आत्मा का (वोसिरामि) त्याग करता हूँ (भंते!) हे प्रभो! (चउत्थे) चौथे (महव्वए) महाव्रत में (सव्वाओ) समस्त (मेहुणाओ) मैथुन सेवन से (वेरमणं) अलग होने को (उवट्ठिओमि) उपस्थित हुआ हूँ। पंचम महाव्रत की प्रतिज्ञा अहावरे पंचमे भंते महव्वार परिग्गहाओ, वेरमणं, सव्वं भंते परिग्गहं पच्चक्खामि से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा 'चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा, नेव सयं परिग्गहं परिगिहिज्जा नेवन्नेहिं परिग्गहं परिगिण्हाविज्जा परिग्गहं परिगिण्हंते वि अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाट तिविहं तिविहेणं मणेणं वाया कारणं न करेमि न कारवेम करतंपि अन्नं नं समणुजाणामि तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि . पंचमे भंते महव्वर उवट्ठिओमि सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं ||५|| (सू. ७) सं.छा.ः अथापरे पञ्चमे भदन्त ! महाव्रते परिग्रहाद् विरमणं. सर्वं भदन्त ! परिग्रहं प्रत्याख्याम्यथाऽल्पं वा बहु वा अणु वा स्थूलं वा चित्तवन्तं वाऽचित्तवन्तं वा नैव स्वयं परिग्रहं परिगृह्णामि नैवाऽन्यैः परिग्रहं परिग्राहयामि परिग्रहं परिगृह्णतोऽप्यन्यान्न समनुजानामि यावज्जीवं त्रिविधं त्रिविधेन मनसा वाचा कायेन न करोमि न कारयामि कुर्वन्तमप्यन्यं न समनुजानामि, तस्य भदन्त ! प्रतिक्रामामि निन्दामि गर्हाम्यात्मानं व्युत्सृजामि. पञ्चमे भदन्त ! महाव्रते उपस्थितोऽस्मि सर्वतः परिग्रहाद्विरमणम् ।।५।। (सू.७) शब्दार्थ - (अह) इसके बाद (भंते ) हे गुरु! (अवरे) आगे के (पंचमें) पांचवे (महव्वए) महाव्रत में (परिग्गहाओ) नवविध परिग्रह से ( वेरमणं) अलग होना जिनेश्वरों ने फरमाया है, अतएव (भंते!) हे कृपासागर ! (सव्वं) समस्त (परिग्गहं) परिग्रह का (पच्चक्खामि) मैं प्रत्याख्यान करता हूँ (से) वह (अप्पं वा') अल्पमूल्य एरंड - काष्ठ आदि (बहुं वा ) बहुमूल्य रत्न आदि (अणुं वा ) आकार से छोटे हीरा आदि (थूलं वा) आकार से बड़े हाथी आदि (चित्तमंतं वा ) सजीव बालक बालिका आदि (अचित्तमंत वा) निर्जीव वस्त्र आभरण आदि (परिग्गहं) परिग्रह (सयं) खुद (परिगिहिज्जा ) ग्रहण करे (नेव) नहीं (अन्नेहिं) दूसरों के पास (परिग्गहं) परिग्रह (परिगिण्हाविज्जा ) ग्रहण करावें (नेव) नहीं (परिग्गहं) परिग्रह (परिगिण्हंते) ग्रहण करते हुए (अन्ने वि) दूसरों को १ 'वा' शब्द से एरंडकाष्ठ, रत्न, सचित्त, अचित्त आदि के अलग-अलग तज्जातीय भेद भी ग्रहण करना चाहिए श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 30
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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