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________________ आचारांगसूत्रोक्त उत्सेदिम आदि जल (खाइमं वा ) खजूर आदि (साइमं वा) इलायची, लोंग, चूर्ण आदि (सयं) खुद (राई) रात्रि में (भुंजिज्जा) खावे (नेव) नहीं (अन्नेहिं) दूसरों को (राई) रात्रि में (भुंजाविज्जा) खवावे (नेव) नहीं (राई) रात्रि में (भुंजंते) खाते. (वि) दूसरों को भी (न समणुजाणेज्जा) अच्छा समझे नहीं, ऐसा जिनेश्वरों ने कहा। इसलिए (जावज्जीवाए ) जीवन पर्यन्त (तिविहं ) कृत कारित अनुमोदित रूप त्रिविध रात्रि-भोजन को (मणेणं) मन (वायाए) वचन (काएणं) काया रूप (तिविहेणं) तीन योग सें (न करेमि) नहीं करता हूँ (न कारवेमि) नहीं कराऊं (करंतं) करते हुए (अन्नं पि) दूसरों को भी ( न समणुजाणामि) अच्छा नहीं समझं (भंते!) हे भगवान्! (तस्स) भूतकाल में किये गये रात्रि - भोजन की ( पडिक्कमामि ) प्रतिक्रमण रूप आलोय़णा करता हूँ (निंदामि) आत्म-साक्षी से निंदा करता हूँ ( गरिहामि) गुरु - साक्षी से गर्हा करता हूँ (अप्पाणं) रात्रि-भोजन करनेवाली आत्मा का (वोसिरामि) त्याग करता हूँ (भंते!). हे प्रभो! (छट्ठे ) छठवें (ए) व्रत में (सव्वाओ) समस्त (राइभोयणाओ ) रात्रि भोजन से (वेरमणं) अलग होने को (उवडिओमि) उपस्थित हुआ हूँ। इच्चेइयाइं पंच महाव्वयाइं राइभोयण- वेरमण - छठ्ठाई। अत्तहियट्टयाए उवसंपज्जित्ताणं विहरामि ॥सू. ९|| सं.छा.ः इत्येतानि पञ्च महाव्रतानि रात्रिभोजन - विरमणषष्ठानि । आत्महितार्थमुपसम्पद्य विहरामि ॥ सू. ९ ।। शब्दार्थ - ( इच्चेयाइं ) इत्यादि ऊपर कहे हुए (पंचमहव्वयाइं ) पांच महाव्रतों (राइभोयणवेरमणछट्ठाइं) और छठवें रात्रि - भोजन विरमण व्रत को (अत्तहियट्ठयाए) आत्महित के लिए (उवसंपज्जित्ताणं) अंगीकार करके (विहरामि ) संयमधर्म में विचरुं । • श्रमण भगवान श्रीमहावीरस्वामी ने सभा के बीच में केवलज्ञान से समस्त वस्तु-तत्त्व को देखकर स्पष्ट रूप से कहा है कि साधु रात्रिभोजन सहित जीव हिंसा, असत्य, चोरी,मैथुन, परिग्रह; इन पांच आश्रवों को दुर्गतिदायक जानकर स्वयं आचरण न करे, दूसरों से आचरण न करावे और आचरण करनेवाले दूसरों को भी अच्छा नहीं समझे। इस प्रकार रात्रिभोजन विरमण सहित पांच महाव्रतों को आत्म-कल्याण के वास्ते अंगीकार करके संयम धर्म में विचरे। ऐसा सुधर्मस्वामी ने जम्बूस्वामी से कहा । जम्बूस्वामी प्रतिज्ञा करते हैं कि हे भगवन्! जिनेश्वरों की आज्ञा के अनुसार मैं रात्रिभोजन सहित पांचों आश्रवों का, तीन करण, तीन योग से त्याग करता हूँ और भूतकाल में आचरण किये गये आश्रवों की आलोयणा रूप आत्मसाक्षी से निंदा तथा साक्षी से और आश्रवसेवी आत्मा का त्याग करता हूँ। इस प्रकार रात्रिभोजन विरमण व्रत सहित पांच महाव्रतों को भले प्रकार स्वीकार करके संयमधर्म में विचरता हूँ । इसी तरह प्रतिज्ञा और रात्रिभोजनविरमणव्रत - सहित पांचों महाव्रत जिनका श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 32
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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