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________________ आचरण करके कहा, (सुपण्णत्ता) बारह पर्षदा में भले प्रकार से कहा (मे) मेरी आत्मा को (अज्झयणं) वह अध्ययन (अहिज्झिउं) अभ्यास करने के लिए (सेयं) हितकारक, और (धम्मपन्नत्ती) धर्मप्रज्ञप्ति रूप है। - जम्बूस्वामी' पूछते हैं कि हे भगवन्! अध्ययन करने के लिए आत्महितकारक और धर्मप्रज्ञप्ति रूप वह कौन-सा षड्जीवनिका अध्ययन है, जो काश्यपगोत्रीय श्रमण' भगवान् महावीरस्वामी ने केवलज्ञान से जानकर, स्वयं आचरण करके और देवादि-सभा में बैठकर प्ररूपण किया है? छ जीवनिकाय का स्वरूप इमा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं । समणेण भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइआ सुअक्खाया सुपण्णत्ता सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती || ३ || सं.छा.ः एषा खलु सा षड्जीवनिका नामाध्ययनम् । श्रमणेन भगवता महावीरेण काश्यपेन प्रवेदिता स्वाख्याता सुप्रज्ञप्ता श्रेयो मे अध्येतुं अध्ययनं धर्मप्रज्ञप्तिः ||३|| शब्दार्थ - (इमा) आगे कहा जानेवाला (सा) वह (छज्जीवणिया णामज्झयणं) षड्जीवनिका नामक अध्ययन जो (खलु) निश्चयकर (कासवेणं) काश्यपगोत्रीय (समणेणं) श्रमण (भगवया) भगवान् (महावीरेणं) श्रीमहावीरस्वामी ने (पवेइया) अलौकिक प्रभाव से कहा (सुअक्खाया) बारह पर्षदा में बैठकर कहा (सुपण्णत्ता) : खुद आचरणकर भली प्रकार से कहा है । (अहिज्झिउं) अभ्यास करने के लिए (धम्मपणत्ती) धर्मप्रज्ञप्ति रूप (अज्झयणं) वह अध्ययन (मे) मेरी आत्मा को (सेयं) हितकारक है (तं जहा) वह इस प्रकार है - - सुधर्मास्वामी' फरमाते हैं कि हे जम्बू ! धर्मप्रज्ञप्ति रूप और आत्महितकर आगे कहा जानेवाला यह षड्जीवनिका नामक अध्ययन, जो काश्यपगोत्रीय श्रमण भगवान् श्री महावीरस्वामी ने अलौकिक प्रभाव से देख, १. राजगृही नगरी के शेठ रिख भदत्त की स्त्री धारिणी के पुत्र, अन्तिम केवली, जिन्होंने निन्यानवे करोड़ सोनैया और नवपरिणीत आठ स्त्रियों को छोड़कर सोलहवर्ष की उम्र में ५२७ के परिवार से सुधर्मस्वामी के पास दीक्षा ली। और जो १६ वर्ष का गृहस्थ, २० वर्ष का छभस्थ, ४४ वर्ष का केवल पर्याय पूर्ण कर .के वीरनिर्वाण के बाद ६४ वर्ष पश्चात् मोक्ष गये।. विविध प्रकार की तपस्या करनेवाले महान तपस्वी को 'श्रमण' कहते हैं। .२ ३ कोल्लग गाँव के धम्मिल ब्राह्मण की स्त्री भद्दिला के पुत्र, भगवान् के ग्यारह गणधरों में से पांचवे गणधर, जिन्होंने ५०० विद्यार्थीओं के परिवार से अपापानगरी में वीरप्रभु के पास दीक्षा ली, और जो ५० वर्ष गृहस्थ, ४२ वर्ष चारित्र (छभस्थ) तथा ८ वर्ष केवली पर्याय पाल के वीरनिर्वाण से बीसवे वर्ष मोक्ष गये। ४ हाथ की हथेली पर रक्खी हुई वस्तु के समान लोकाऽलोकगत पदार्थों के सूक्ष्म बादर भावों को केवलज्ञान से देखनेवाले । श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 20
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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