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बारह पर्षदा में बैठ और स्वय आचरण करके प्ररूपण किया है। वह इस प्रकार हैतं जहा - पुढविकाइआ आउकाइआ तेउकाइआ, वाउकाइआ वणस्सइकाइआ तसकाइआ ||४|| पुढवी चित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा, पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणरणं ||५|| आउ चित्तमंत मक्खाया अणेगजीवा, पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणरणं ||६|| ते चित्तमंत मक्खाया अणेगजीवा, पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणरणं ||७|| वाउचित्तमंतमक्खाया अणेगजीवा, पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणरणं ||८|| वणस्स चित्तमंत मक्खाया, अणेगजीवा । पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्थपरिणरणं ||९|| तं जहा - अग्गबीआ, मूलबीआ, पोरबीआ, खंधबीआ बीअरुहा, संमुच्छिमा तणलया, वणस्सइकाइआ सबीआ चित्तमंत - - मक्खाया अणेगजीवा. पुढोसत्ता अन्नत्थ सत्यपरिणरणं ॥१०॥
सं.छा.ः तद्यथा-पृथिवीकायिका अप्कायिकास्तेजः कायिकाः, वायुकायिका वनस्पतिकायिकास्त्रसकायिकाः।।४। पृथिवी चित्तवत्याख्याता, अनेकजीवा । पृथक्सत्त्वा अन्यत्र शस्त्रपरिणतेन ॥५॥ आपश्चित्तवत्य आख्याता अनेकजीवा । पृथक्सत्त्वा अन्यत्र शस्त्रपरिणतेन ||६|| तेजश्चित्तवदाख्यातं अनेकजीवा । पृथक्सत्त्वमन्यत्र शस्त्रपरिणतेन ||७|| वायुश्चित्तवानाख्यातः, अनेकजीवा । पृथक्सत्त्वः, अन्यत्र शस्त्रपरिणतेन ॥८॥ वनस्पतिश्चित्तवानाख्यातः अनेकजीवा ।
पृथक्सत्त्वः, अन्यत्र शस्त्रपरिणतेन ।।९।।
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अग्निकूण में गणधर आदि, विमानवासी देवियां, साध्वियां, नैऋतकूण में भवनपतिदेवियां, ज्योतिष्कदेवियां प, व्यन्तरदेवियां है, वायुकूण में भवनपतिदेव है, ज्योतिष्कदेव है, व्यन्तरदेव'ट, ईशानकूण में वैमानिकदेव ट, मनुष्य टै, मनुष्यस्त्रियां टै; इन बारह प्रकार की पर्षदा में जिनेश्वर उपदेश देते हैं।
श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 21