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________________ इह खलु छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं - भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइआ सुअक्खाया - सुपण्णत्ता, सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती ||१|| सं.छा.ः श्रुतं मया आयुष्मन्! तेन भगवतैवमाख्यातं, (एषा) इह खलु षड्जीवनिका नामाध्ययनं श्रमणेन भगवता, - महावीरेण काश्यपेन प्रवेदिता स्वाख्याता सुप्रज्ञप्ता श्रेयो मे अध्येतुं अध्ययनं धर्मप्रज्ञप्तिः ।।१।। शब्दार्थ - (आउसंतेणं) हे आयुष्यमन्! जम्बू! (मे) मैंने (सुअं) सुना (भगवया) भगवान्' ने (एवं) इस प्रकार (अक्खायं) कहा, कि (इह) इस दशवैकालिक सूत्र में तथा जैनशासन में (खलु) निश्चय से (छज्जीवणिया णामज्झयणं) षड्जीवनिका नामक अध्ययन को (समणेणं) महातपस्वी (भगवया) भगवान् (कासवेणं) काश्यपगोत्री (महावीरेणं) महावीरस्वामी ने (पवेइया) केवलज्ञान से जानकर कहा (सुअक्खाया) बारह पर्षदा में बैठकर भली प्रकार से कहा (सुपण्णता) खुद आचरण करके कहा (मे) मेरी आत्मा को (अज्झयंणं) यह अध्ययन (अहिज्झिउं) अभ्यास करने के लिए (सेयं) हितकर, और (धम्मपणत्ती) धर्मप्रज्ञप्ति रूप है। ... - पंचम गणधर श्रीसुधर्मास्वामी अपने मुख्य शिष्य जम्बूस्वामी को फरमाते हैं कि हे आयुष्मन्! यह षड्जीवनिका नामक अध्ययन काश्यपगोत्रीय श्रमण भगवान् महावीरस्वामी ने समवसरण में बैठकर बारह पर्षदा के सामने केवलज्ञान से समस्त : वस्तुतत्त्व को अच्छी तरह देखकर प्ररूपण किया है। अतएव यह धर्मप्रज्ञप्ति रूप अध्ययन अभ्यास करने के लिए आत्म हित-कारक है। . शिष्य प्रश्न कयरा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेईआ सुअक्खाया सुपण्णत्ता सेअं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपन्नत्ती?||२|| .सं.छा.: कतरा खलु सा षड्जीवनिकानामाध्ययनं, श्रमणेन भगवता ..... महावीरेण काश्यपेन प्रवेदिता स्वाख्याता सुप्रज्ञप्ता श्रेयो मे अध्येतुं . अध्ययनं धर्मप्रज्ञप्तिः? ।।२।। शब्दार्थ - (कयरा) कौन-सा (खलु) निश्चय करके (सा) वह (छज्जीवणिया णामज्झयणं) षड्जीवनिका नामक अध्ययन, जो (कासवेणं) काश्यपगोत्रीय (समणेणं) श्रमण (भगवया) भगवान् (महावीरेणं) महावीरस्वामी ने (पवेइया) कहा (सुअक्खाया) खुद १ संपूर्ण ऐश्वर्य, संपूर्ण रूपराशि, संपूर्ण यशः कीर्ति, संपूर्ण शोभा, संपूर्ण ज्ञान, संपूर्ण वैराग्य; इन छ: ... वस्तुओं के धारक पुरुष को 'भगवान्' कहते हैं। श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 19
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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