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________________ (सहेत्तु) सहन करके (अत्थ) इस संसार में (केइ) कितने ही साधु (देवलोएसु) देवलोकों में जाते हैं, (केइ) कितने ही साधु (नीरया) कर्मरज से रहित हो (सिझंति) सिद्ध होते हैं। - साध्वाचार का पालन करके और आतापना को सहनकर कितने ही साधु देवलोकों में और कितने ही कर्मरज को हटाकर मोक्ष में जाते हैं। खवित्ता पुत्वकम्माई, संजमेण तवेण य| सिद्धिमग्गमणुपत्ता, ताइणो परिनिव्वुडे ||१५|| ति बेमि || . सं.छा.ः क्षपयित्वा पूर्वकर्माणि, संयमेन तपसा च। सिद्धिमार्गमनुप्राप्ताः, तायिनः परिनिता (वान्ति) इति ब्रवीमि ।।१५। शब्दार्थ - (संजमेण) सतरह प्रकार के संयम से (य) और (तवेण य) बारह प्रकार के तप से (पुव्वकम्माइं) बाकी रहे पूर्व-कर्मों को (खवित्ता) क्षय करके (सिद्धिमग्गं) मोक्षमार्ग को (अणुप्पत्ता) प्राप्त होने वाले (ताइणो) स्व-पर को तारनेवाले साधु (परिनिव्वुडे) सिद्धिपद को प्राप्त होते हैं (त्ति) ऐसा (बेमि) मैं अपनी बुद्धि से नहीं, किन्तु तीर्थकर .. आदि के उपदेश से कहता हूँ। - जो साधु देव' लोक में पैदा हुए हैं, वे वहाँ से देवसंबन्धी भवस्थिति और ... देवभोगों का क्षय होने के बाद चव करके आर्य-कुलों में उत्पन्न होते हैं। फिर वे दीक्षा लेकर संयम पालन और विविध तपस्याओं सेअवशिष्ट कर्मों को खपा करके मोक्ष चले जाते हैं। आचार्य श्रीशय्यंभवस्वामी फरमाते हैं कि हे मनक! ऐसा मैं अपनी बुद्धि से नहीं, किन्तु तीर्थंकर गणधर आदि महर्षियों के उपदेश से कहता हूँ। ॥ इति क्षुल्लकाचार कथा नामकमध्ययनं तृतीयं समाप्तम् ।। ४ षड्जीवनिका नामकम् अध्ययनम् सम्बन्ध - तीसरे अध्ययन का प्रतिपाद्य विषय साध्वाचार का पालन और अनाचारों का त्याग करना है। सदाचारों का पालन-षड्जीवनिकाय का स्वरूप जानकर, उसकी रक्षा किये बिना नहीं होता। इस संबन्ध से आये हुए चौथे अध्ययन में षड्जीवनिकाय और उसकी जयणा रखने का स्वरूप दिखाया जाता है - छ जीव निकाय की प्ररूपणा किसने की? सुअं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं, १ सुधर्म, ईशान, आदि बारह स्वर्ग, सुदर्शन, सुप्रतिबद्ध आदि नव ग्रैवेयक और विजयादि पांच अनुत्तर २ उत्तम, ३ बाकी रहे हुए, ४ भवोपग्राही श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 18
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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