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________________ से याचना पूर्वक भिक्षाग्रहण करना, अज्ञात कुलों से भिक्षा लेना, निर्जन-एकान्त स्थल में रहना, निर्दोष उपकरण लेना, अल्पोपधि रखना, क्लेशका त्याग करना। इस प्रकार मुनियों की विहार चर्या प्रशस्त (प्रशंसा योग्य) है। वह स्थिरतापूर्वक आज्ञा पालन द्वारा भावचारित्र का साधन होने से पवित्र है।।५।। आहार शुद्धि :आइएण-ओमाण-विवज्जणा अ, ओसन्न-दिट्ठाहड-भत्तपाणे। संसठ्ठ-कप्पेण चरिज्ज भिक्खू, तज्जाय-संसठ्ठ जई जईज्जा ||६|| सं.छा.ः आकीर्णापमानविवर्जना च, उत्सन्नदृष्टाहतभक्तपानम्। संसृष्टकल्पेन चरेच्च भिक्षुः, तज्जातसंसृष्टो यतिर्यतेत ।।६।। भावार्थ : मुनि राजकुल में (आकीर्ण) एवं जिमनवार में (अवमान) गोचरी हेतु न जावे। जहां जाने से स्वपक्ष से या पर पक्ष से अपमान होता है वहां भी न जाये। प्रायः दृष्टिगत स्थान से लाया हुआ आहार ले। अचित्त आहारादि से खरंटित भाजन, कडछी, हाथ आदि से आहार ले वह भी स्वजाति वाले आहार से खरंटित भाजन,कडछी हाथ आदि से आहार लेने का यत्न करें ।।६।। अमज्ज-मंसासि अमच्छीआ, अभिक्खणं निविंगई गया अI. अभिक्खणं काउस्सग्गकारी, सज्झायजोगे पयओ हविज्जा ||७|| सं.छा.: अमद्यमांसाशी, अमत्सरी च, अभीक्ष्णं निर्विकृतिं गतश्च। .. अभीक्ष्णं कायोत्सर्गकारी, स्वाध्याययोगे प्रयतो भवेच्च ॥७॥ भावार्थ : मुनि मदिरा, मांस का भक्षण न करें, मात्सर्यतारहित बने, बार-बार दुध आदि विगईयों का त्याग करें, बार-बार सौ कदम के ऊपर जाकर आने के बाद काउस्सग्ग करें,(इरियावही प्रतिक्रमण करे) और वाचना आदि स्वाध्याय में, वैयावच्च में और मनियों को आयंबिलादि तपधर्म में अतिशय विशेष प्रयत्न करना चाहिए।।७।। ममत्व त्याग :- .. न पडिण्णविज्जा सयणासणाई, सिज्जं निसिज्जं तह भत्तपाणं| गामे कुले वा नगरे व देसे, ममत्तभावं न कहिं पि कुज्जा ||४|| सं.छा.: न प्रतिज्ञापयेच्छयनासने, शय्यां निषद्यां तथा भक्तपानम्। ग्रामे कुले वा नगरे वा देशे, ममत्वभावं न क्वचिदपि कुर्यात् ।।८।। भावार्थ : मास कल्पादि पूर्ण होने के बाद विहार करते समय श्रावकों से प्रतिज्ञा न . करावें की शयन, आसन, शय्या (वसति) निषद्या, सज्झाय करने की भूमि और आहार, पानी हम जब दूसरी बार आये तब हमें ही देना। इस प्रकार प्रतिज्ञा करवाने में ममत्व भाव की वृद्धि होती है। साधु ग्राम, नगर, कुल, देश आदि में ममत्व भाव न करें। दुःख के कारणभूत ममत्व भाव है।।८।। श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 177
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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