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________________ चतुर्थ पद है। इन्हीं अर्थों को बतानेवाला श्लोक कहा है। जो साधु विविध प्रकार के गुण युक्त तप धर्म में निरंतर आसक्त रहते हैं, इहलोकादि की आशंसा रहित और केवल एकमेव कर्म निर्जरार्थ तप धर्म का आचरण करता है, उस तप धर्म के द्वारा पूर्वोपार्जित कर्मों का नाश करता है, ऐसा साधु नित्य तपसमाधि से युक्त है एवं नये कर्मों का बंध नहीं करता ।।४।। आचार समाधि: चउविहा खलु आयारसमाही भवइ, तं जहा-नो . इहलोगट्ठयार आयारमहिछिज्जा १, नो परलोगट्ठयार आयारमहिहिज्जा २, नो कित्ति-वण्णसह-सिलोगठ्ठयार...' आयारमहिछिज्जा ३, नन्नत्थ आरहन्तेहिं हेऊहिं आयारमहिट्ठिज्जा ४, चउत्थं पयं भवइ, भवड़ य एत्थ सिलोगो || जिणवयण-रए अतिंतिणे, पडिपुण्णायय-माययट्ठिा आयारसमाहि-संवुडे, भवई य दन्ते भाव-संधष्ट ||५|| .. सं.छा.ः चतुर्विधः खल्वाचारसमाधिर्भवति, तद्यथा नेहलोकार्थमाचारमधि- . तिष्ठेत् १ नो परलोकार्थमाचारमधितिष्ठेत् २ नो कीर्तिवर्णशब्दश्लाघार्थमाचारमधितिष्ठेत्, ३ नान्यत्र आहे हेतुभिराचारमधितिष्ठेत्, ४ चतुर्थं पदं भवति, भवति चात्र श्लोकः ।। जिनवचनरतोऽतिन्तिनः, प्रतिपूर्ण आयतमायतार्थिकः। आचारसमाधिसंवृतो, भवति च दान्तो भावसंन्धकः ।।५।। भावार्थ : मूल-उत्तर गुण रूप आचार समाधि चार प्रकार से है। वह इस प्रकार है (१) इहलोक में सुख प्राप्ति हेतु आचार पालन न करना। (२) परलोक में सुख प्राप्ति हेतु आचार पालन न करना। (३) कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लोक के लिए आचार पालन न करना। (४) एकमेव श्री अरिहंत भगवंत द्वारा कहे हुए अनाश्रव पना (मोक्ष) प्राप्त करने हेतु आचार धर्म का पालन करना। यह चतुर्थ पद है। इसी अर्थको दर्शानेवाला श्लोक कहा है। ___आचार धर्म में समाधि रखने से, आश्रव द्वार को रोकनेवाला, जिनागम में आसक्त, अक्लेशी, शान्त, सूत्रादि से परिपूर्ण, अत्यंत उत्कृष्ट मोक्षार्थी, इंद्रिय एवं मन का दमन करनेवाला बनकर आत्मा को मोक्ष के निकट करनेवाला बनता है।।५।। उपसंहार :अभिगम चउरो समाहिओ, सुविसुद्धो सुसमाहियप्पओ। श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 160
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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