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________________ (१) स्नेह सूक्ष्म हिम कण। (२) पुष्प सूक्ष्म बड़ आदि के पुष्प। (३) प्राणी सूक्ष्म : चले तब दिखायी दे स्थिर हो तब न दिखायी दे या रजकण. के रूप में दिखायी दे। (४) उत्तिंग सूक्ष्म : कीटिका नगर में रही हुई चिंटियाँ और दूसरे भी सूक्ष्म जीव। (५) पनक सूक्ष्म : पंचवर्ण की काई, सेवाल, लीलफूल। (६) बीज सूक्ष्म : तूष के बीज आदि। (७) हरित सूक्ष्म : उत्पन्न होते समय पृथ्वी के समान वर्ण युक्त वनस्पति जीव। (८) अंड सूक्ष्म : मक्षिका आदि के सूक्ष्म अंडे आदि। सभी इंद्रियों में राग द्वेष रहित प्रवृत्त मुनि उपरोक्त अष्ट प्रकार के जीवों को. जानकर अप्रमत्त भाव से शक्ति अनुसार उनकी रक्षा के लिए प्रयत्न करें ॥१५-१६।। पडिलेहण के द्वारा जीव रक्षा : धुवं च पडिलेहिज्जा, जोगसा पायकंबलं। सिज्ज-मुच्चारभूमिं च, संथारं अदुवासणं ||१७|| सं.छा.ः ध्रुवं च प्रत्युपेक्षेत, योगे सति पात्रकम्बलम्। . शय्यामुच्चारभूमिं च, संस्तारकमथवाऽऽसनम् ॥१७।। भावार्थ : स्वशक्ति होते हुए मुनि को प्रतिलेखना के समय पात्र, कंबल, उपाश्रय, स्थंडिल भूमि,संस्तारक और आसन आदि उपकरण की शास्त्रोक्त रीति से प्रतिलेखनाकर, अहिंसा धर्म का पालन करना चाहिए ।।१७।।। परिष्ठापनिका समिति से जीव जयणा : उच्चारं पासवणं, खेल सिंघाणजल्लिअं| फासुअं पडिलेहिता, परिठ्ठाविज्ज संजए ||१८|| सं.छा.: उच्चारं प्रस्रवणं, श्लेष्मं सिङ्घाणजल्लिकम्। प्रासुकं प्रत्युपेक्ष्य, परिस्थापयेत्संयतः ।।१८।। भावार्थ : मुनि भूमि का प्रतिलेखनकर,जहां जीव रहित भूमि हो वहां, बड़ी नीति, लघु . नीति, कफ (श्लेष्म) कान एवं नाक का मेल, आदि परठने योग्य पदार्थों को परठकर साध्वाचार का पालन करें ।।१८।। गृहस्थ के घर गोचरी के समय जीव जयणा : पविसित्तु परागारं, पाणट्ठा भोअणस्स वा। जयं चिढे मिअं भासे, न य सवेसु मणं करे ||१९|| . सं.छा.ः प्रविश्य परागारं, पानार्थं भोजनस्य वा। श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 128
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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