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________________ सं.छा.: त्रसप्राणिनो न हिंस्याद्, वाचाऽथवा कर्मणा। उपरतः सर्वभूतेषु, पश्येद्विविधं जगत् ।।१२।। भावार्थ : मुनि वचन या काया से उपलक्षण से, मन से भी त्रस जीव की हिंसा न करें। सभी प्राणीयों की हिंसा से उपरत होकर, निर्वेद की वृद्धि हेतु कर्म से पराधीन नरकादि गति रूप विविध प्रकार के जगत् के जीवों के विषय में विचार करें। आत्मौपम्य दृष्टि से देखें। गहराई से देखें ।।१२।। अष्ट प्रकार के सूक्ष्म जीवों का स्वरूप :__ अट्ठ सुदुमाई पेहार, जाइं जाणितु संजए। ' दयाहिगारी भूएसु, आस चिट्ठ सरहि वा ||१३|| सं.छा.: अष्टौ सूक्ष्माणि प्रेक्ष्य, यानि ज्ञात्वा संयतः। दयाधिकारी भूतेषु, आसीत तिष्ठेच्छयीत वा ।।१३।। भावार्थ : मुनि को आगे कहे जाने वाले आठ जाति के सूक्ष्म जीवों को जानना चाहिए। इन सूक्ष्म जीवों को जाननेवाला मुनि जीव दया का अधिकारी बनता है। इन सूक्ष्म जीवों का ज्ञान प्राप्त करने के बाद बैठना, उठना,खड़े रहना एवं सोना आदि क्रिया निर्दोष रूप से हो सकती है ।।१३।। .. कयराइं अट्ठ सुहुमाइं? जाइं पुच्छिज्ज संजए। ईमाई ताई मेहावी, आईखिज्ज विअक्खणे ||१४|| .सं.छा.: कतराण्यष्टौ सूक्ष्माणि, यानि पृच्छेत्संयतः? . अमूनि तानि मेधावी, आचक्षीत विचक्षणः ।।१४।। भावार्थ : वे आठ सूक्ष्म कौन-कौन से हैं? ऐसा संयमी शिष्य के प्रश्न के प्रत्युत्तर में विचक्षण मेधावी आचार्य गुरु भगवंत निम्न प्रकार से शिष्य का समाधान करें ।।१४।। वे आठ सूक्ष्म निम्न प्रकार से हैं :. सिणेहं पुप्फसुहुमं च, पाणुत्तिगं तहेव या पणगं बीअ-हरिअं च, अंडसुहुमं च अट्ठमं ||१५|| एवमेंआणि जाणित्ता, सव्वभावेण संजए। अप्पमत्तो जए निच्चं, सबिंदिअ-समाहिए ।।१६।। सं.छा.: स्नेहं पुष्पसूक्ष्मं च, प्राण्युत्तिङ्गं तथैव च। पनकं बीजहरितं च, अण्डसूक्ष्मं चाष्टमम् ॥१५।। एवमेतानि ज्ञात्वा, सर्वभावेन संयतः। अप्रमत्तो यतेत नित्यं, सर्वेन्द्रियसमाहितः ।।१६।। भावार्थ : आठ प्रकार के सूक्ष्म जीव निम्नांकित हैं - श्री दशवैकालिक सूत्रम् – 127
SR No.002252
Book TitleSarth Dashvaikalik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year2004
Total Pages184
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size15 MB
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