________________
लकड़ी (अच्चिं) अग्नि से दूर हुई ज्वाला ।।८।। (सिणेह) स्नेह-सूक्ष्म (पुष्पसुहुमं) पुष्प-सूक्ष्म (पाणुत्तिंग) प्राणी-सूक्ष्म, उत्तिंग-सूक्ष्म कीटिका नगर ।।१५।। (धुवं) नित्य ।।१७।। (सिंघाणजल्लिअं) नाक, कान का मेल ।।१८।। (परागारं) गृहस्थ के घर में ॥१९।। (अक्खाड) कहने के लिए (अरिहइ) योग्य है ।।२०।। (केण उवाएण) कोइ भी उपाय से ।।२१।। (निट्ठाणं) सर्व गुण से युक्त आहार (रसनिज्जूढं) नीरस आहार (भद्दगं) अच्छा ।।२२।। (उंछं) धनाढ्य के घर ।।२३।। (आसुस्त) क्रोध के प्रति, (प्रेम) राग (नाभिनिवेसए) न करे, (अहियासए) सहन करे ।।२६।। (अत्थंगयंमि) अस्त हो जाने पर (आइच्चे) सूर्य (पुरत्था) सुबह में (अणुग्गए) उदय होने के पूर्व ।।२८।। (अतिंतिणे) प्रलाप न करें, (अचवले) स्थिर (उअरे दंते) स्वयं के पेट को वश में रखनेवाले (न खिंसए) निंदा न करे ।।२९।। (अत्ताणं) स्वयं का (समुक्कसे) प्रशंसा ।।३०।। (कट्ट) करके, (आहम्मि) अधार्मिक (संवरे) आलोचना करे ।।३१।। (परक्कम) सेवनकर, (सुई) पवित्र (वियडभावे) प्रकट भाव के धारक (असंसत्ते) अप्रतिबद्ध ।।३२।। (अमोघं) सफल (उवव्वायए) आचरण में लेना ।।३३।। (अणिग्गहिआ) वश न किये हुए, अनिगृहीत (कसिणा) संपूर्ण (पुणब्भवस्स) पूनर्जन्म ।।४०।। (रायणिएसु) रत्नाधिक (पउंजे) करे (धुवसीलयं) निश्चयशीयल को, (कुम्मुव्व) कूर्मसम (अलीण पलीण गुत्तो) आलीन-प्रलीन-गुप्त, अंगोपांगों को सम्यक् प्रकार से रखने वाला (परक्कमिज्जा) प्रवृत्त हो ।।४१।। (मीहो) एक दूसरे के साथ, (सप्पहासं) हँसी-मजाक के वचन ॥४२।। (जुने) जोड़े (अनलसो) आलसरहित ।।४३।। (पारत्त) परलोक ' (पज्जुवासिज्जा) सेवा करे (अत्थविणिच्छयं) अर्थ के निर्णय को ।।४४।। (पणिहाय) प्रणिधान एकाग्रचित्त ।।४५।। (किच्चाण) आचार्य जो उनके (उरं समासिज्ज) जंघा पर जंघा चढाकर (गुरूणंतिए) गुरु के पास ।।४६।। (पिट्ठिमंस) परोक्ष में निंदा ।।४७।। • (अहिअगामिणी) अहित करनारी ।।४८।। (पडिपुन्न) स्पष्ट उच्चार युक्त, प्रकट ऐसी (अयंपिरं) न ऊँचे (अणुव्विग्गं) अनुद्विग्न युक्त (निसिर) बोले (अत्तवं) चेतनायुक्त/ चेतनावंत ॥४९।। (अहिज्जगं) अध्ययन करनेवाले (वायविक्खलिअं) वचन बोलते समय स्खलित होना, भूल जाना ।।५०।। (भूआहिगरणं पयं) प्राणीओं के लिए पीड़ा का स्थानक ५१।। (अन्नट्ठ) अन्य के हेतु, (पगड) किया हुआ (लयणं) स्थान (भइज्ज) सेवे ।।५२।। (विवित्ता) दूसरे से रहित ।।५३।। (कुक्कुड पोअस्स) मुर्गे के बच्चे को (कुललओ) बिल्ली से (विग्गहओ) शरीर से ।।५४।। (चित्त भित्ति) चित्रित (निज्झाए) देखे (सुअलंकिअं) अच्छे अलंकार युक्त (भक्खरं-पिव) सूर्य को जैसे ' (पडिसमाहरे) खींच ले ॥५५।। (पडिछिन्नं) कटे हुए ।।५६।। (अत्तगवेसिस्स) आत्मार्थी
के (तालउड) तालपूट ।।५७।। (पच्चंग) प्रत्यंग (चारुल्लविअं) मनोहर आलाप (पेहिअं) दृष्टि को ।।५८।। (मप्पुनेसु) मनोहरों में (नाभिनिवेसए) न स्थापन करें (अणिच्च) अनित्य ।।५९।। (विणीअतण्हो) तृष्णा को दूर करता हुआ (सीईभूण्ण)
श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 123