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सुवाक्य शुद्धि अध्ययन के उपयोगी शब्दार्थ - ( परिसंखाय ) जानकर (पन्नवं) बुद्धिमान (सव्वसो) सभी प्रकार से (विणयं) शुद्ध प्रयोग करना सीखे ||१|| (सच्चा) सत्य (अवत्तंव्वा) न बोलने योग्य (णाइन्ना) अनाचीर्ण ||२|| ( अकक्कसं) अकर्कश (समुप्पेह) अच्छी प्रकार से विचार करके बोली हुई (असंदिद्ध) संदेह रहित || ३ || (अट्ठ) विषय (अन्नं) दूसरा (नामेइ) प्रतिकूल || ४ || (वितहं) असत्य ( तहामुत्तिं) तथा मूर्ति, सत्य जैसा, (पुट्ठो) स्पर्शित, स्पष्ट (किं पूर्ण) फिर क्या कहना ? (वए) बोले ||५|| (वक्खामो) कहेंगे (णे) हमारा ( णं) यह हमारा (एसकालंमि) भविष्यकाल में ( संपयाइअमट्ठे) वर्तमान, भूतकाल की बातें ||६|| ( पच्चुप्पण्ण) वर्तमान (जमट्ठ) जिस वस्तु के लिए (एवमेअं) यह इसी प्रकार ||८|| (निद्दिसं) कहे बोले ||९|| (फरुसा) कठोर (गुरूभूओवघाइणी) अधिक जीवों का घात करने वाली || ११ || (पंडगं ) नपुंसक (ते) चोर को ||१२|| ( उवहम्मइ) दुःख उत्पन्न होना (आयार भाव दोसन्नू) आचार, भाव, दोष का जानकार ||१३|| ( होले ) मूर्ख (गोल) यार से जन्मा (साणे) श्वान (वसुल) छीनालज (दुमए) भिक्षुक (दुहए) दुर्भाग्य || १४ || ( अज्जिए ) दादी (पज्जिए) परदादी (माउसिउ ) मासी (अन्नित्ति) हे अन्ने (हले-हलित्ति) हले-अली (पिउसिए) पितृस्वसा (भायणिज्ज) भाणजी (धुए) पुत्री ( णत्तुणिअ) पौत्री (भट्टे) हे . भट्टे (गोमणि) गोमिनी ॥ १५ - १६ | | ( नामधिज्जेण) नाम लेकर (णं) इसको (बूआ ) बुलावे ( इत्थीगुत्तेण) स्त्री के गौत्र से (जहारिहं) यथायोग्य (अभिगिज्ज) देशकालानुसारी (आलविज्ज) एक बार (लविज्ज) बार- बार ||१७|| (बप्पो ) पिता (चुल्लपिङ) चाचा ।।१८-१९।। (जाइत्ति) जाति के आश्रय से ||२०|| (पसुं) पशु को (सरीसवं ) सर्प - अजगर को (धुले) विस्तारवान् (पमेइले) अतिमेद युक्त (वज़्झे) वध योग्य (पइवे ) पकाने योग्य ||२२|| (परिवूढ) परिवृद्ध, बलवान ( उवचिअ) उपचित देह युक्त . (संजाए) संजात, युवा (पीणिए) पुष्ट (महाकाय ) बड़े शरीरवाला ||२३|| (दुज्जाओ) दुहने योग्य, (दम्मा ) दमन करने योग्य (गोरहग) वृषभ ( वाहिमां) वहन योग्य (रहजोग) रथयोग्य ।।२४।। (जुवं गवित्ति) युवानवृषभ (धेणुं ) प्रसुता धेनु (रसदय त्ति) .दुधं देनेवाली (रहस्से) छोटा (महल्लए) बडा (संवहणि) धोरी ||२५|| (ग़तुं ) जाकर (पव्वयाणि) पर्वतो पर (अलं) योग्य (पासाए) प्रासादों के ( दोणिणं) द्रोण, जल कुंडी ॥ २६-२७॥ चंगबेरे) काष्ठपात्र (नंगले) हल (मइअ ) बीज बोने के बाद खेत को सम करने हेतु उपयोग में आनेवाला कृषि का एक उपकरण (जंतलट्ठी) यंत्र की लकड़ी, कोल्हू (नाभि) नाड़ी, पहिये का मध्य भाग, (गंडिआ) अहरन, एरण (सिआ होगा।।२८।। (जाणं ) रथ ( उवस्सए) उपाश्रय में ||२९|| (जाइमंता) ऊँची जात के (दीह) दीर्घ (वट्टा) गोलाकार ( पयायसाला) विस्तरित शाखायुक्त ( विडियां ) प्रति शाखयुक्त (दरिसणित्ति) देखने योग्य ।।३०-३१।। (पायखज्जाइं) पकाकर खाने योग्य (वेलोइयाइं ) अत्यंत पके हुए (टालाई) कोमल (वेहिमाइं) दो भाग करने योग्य ||३२|| श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 107