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- ७४ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
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हूँ, नगर देखने आया हूं । यदि तुम दूध लेकर बाग में आओ तो लोरक मिलेगा । सुबह होते ही मैना अपनी दस सहेलियों के साथ दूध-दही बेचने चली । लोरक ने चाँद को पहले ही मैना को इशारे से बता दिया और उसे चौगुने पैसे, सोना आदि से दही खरीदने को कहा। चाँद ने वैसा ही किया । चाँद ने सभी अहोरिनों को सिंदूर भरा । मैना ने ऐसा करने से रोक दिया । उसने अपने पति का हरदी में किया । लोरक ने मैना से छेड़छाड़ की तो चली आई |
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चले जाने का दुःख प्रकट वह बिगड़ गई और घर
दूसरे दिन पुनः सब दही बेचने गईं । चाँद ने मैना को अन्दर बुलाया और लोक की करनी पूछने लगी । मैना ने सब पहली कहानी बता दी और यह भी 'कहा कि कहीं चाँद मिले तो उसका मुँह काला कर दूँ । वे दोनों झगड़ गईं। बीच में लोरक आकर प्रकट हो गया । मैना प्रसन्न हो उठी ।
नगर में ऐसा शोर हो गया कि इस पर अजयी उससे लड़ने आया । टूट गया । लोरक को पहचान वह गले लिपट गया । लोरक घर आया, खोलिन के पैर छुए और उसने दोनों बहुओं का स्वागत किया । लोरक ने अपनी माँ से पूछा कि पीछे कैसे रहीं। माँ ने बताया — पीछे बावन आया था और मैना को गाली दी । मोकर भी अपनी सेना लेकर आया । कवरू ने उसका सामना किया । परन्तु अकेला होने से मारा गया। माँ ने कहातुम्हारे पीछे रात-दिन जागती - रोती रही हूँ ।
मृगावती -- इस कृति के रचयिता कुतुवन हैं । मृगावती नाम से कई रचनाएँ प्राप्त हैं जिनका उल्लेख मेघराज प्रधानकृत मृगावती का विवरण प्रस्तुत करते समय किया जा चुका है। सूफ़ी प्रेमाख्यानक साहित्य में जब तक चन्दायन प्रकाश में नहीं आई थी तब तक यही प्राचीन कृति मानी जाती थी । मृगावती की कथा संस्कृत, जैन-बौद्ध ग्रन्थों में पाई जाती थी । कुतुवन ने दाऊद की परम्परा का ही निर्वाह किया । मृगावती में अन्तर्कथाएँ भी आई हैं जो उसके परवर्ती प्रेमाख्यानकों में भी रूढ़ हुई हैं । इसमें पुरुष - नारी दोनों पात्रों की बहुलता है। कथा इस प्रकार है :
१. डा० शिवगोपाल मिश्र द्वारा सम्पादित, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से प्रकाशित,
मैंना आगन्तुक के साथ रहती है ।
उसने खोडा चलाया जो बीच में ही