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________________ ६४ : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक है। चन्द्रप्रभा तो उसके सामने कुछ भी नहीं है । इतना सुनते ही चन्द्रप्रभा पिंजरे को उठाकर ले गई। उस दिन से कुमार ससिकला के विरह से सन्तप्त रहने लगा। ___ एक दिन तोते से मार्गदर्शन कराने की प्रार्थना की। इस पर प्रेममार्ग की कठिनाई का तोते ने उपदेश दिया । किन्तु राजकुमार मानने को तैयार नहीं हुआ। दूसरे दिन राजकुमार तोते को साथ ले-संसैन्य कनकपुर की ओर चल पड़ा। ___तीन दिन के बाद वह एक सुन्दर वन में पहुंचा। मृगों को देखकर कुमार के मन में मृगया का विचार आ गया। उसने अपना घोड़ा मृग के पोछे दौड़ा दिया ।शाम हो गई परन्तु मग हाथ नहीं आया।कुमार को प्यास लगी। वह सामने ही एक झोपड़ी में गया। वहाँ एकं संन्यासी ध्यानस्थ था। इसके पहुंचने पर उसने अपनी आँखें खोली और इससे बहाँ आने का कारण पूछा। राजकुमार ने सारी घटना बता दी । संन्यासी ने राजकुमार को आँख मिलाने को कहा। राजकुमार ने जब आँख मिलाई तो उसमें कनकपुर, ससिकला आदि साक्षात् हुए। कुमार ससिकला का रूप देख मूच्छित हो गया। जब उसे चेत हुआ तो उसने अपने को वहीं पाया जहाँ से वह चला था। परन्तु वहाँ उसके साथी नहीं मिले। दूसरे दिन कुमार अकेला ही कनकपुर की ओर चला। गर्मी के कारण वह एक सरोवर में स्नानहेतु प्रविष्ट हआ। उसमें घसते ही उसे ऐसा लगा कि कोई नीचे की ओर खींच रहा है। नीचे वह जमीन पर पहुँच गया। वहाँ उसने एक सुन्दर फुलवारी देखी। उसमें एक महल बना था। वह महल की ओर बढ़ने लगा तो उसे सुन्दरियाँ दष्टिगोचर हुईं। उनमें से एक सुन्दरी मणिजटित सिंहासन पर बैठी थी। ___ कुमार के पहुंचते ही सुन्दरी ने कुमार का स्वागत किया और उसे सिंहासन पर बिठाया । उसे सुस्वादु भोजन कराया। अपने महल में ले जाकर उसे बताया कि वह जादूगर महिपाल की बेटी है। उसने यह भी बताया कि वह बहुत दिनों से उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। कुमार ने ससिकला के प्रति अपना अनुराग बताया और जाने की अनुमति चाही। सुन्दरी ने कुमार से एक दिन रुक जाने को कहा। वह रुक गया। दूसरे दिन जब वह जाने लगा तो उसने जादू से भस्म करने की धमकी दी। अतः वह नहीं गया, वहीं रहने लगा। महिपाल-सुता ने काफी दिन बाद
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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