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________________ हिन्दी प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ६३ का कथानक में भाग लेने जैसो अनेक कथानक रूढ़ियों का भी प्रयोग हुआ है । कथा इस प्रकार है : । प्रजापालक एवं धर्मात्मा राजा प्रभाकर सुन्दरनगर में राज्य करते थे। सन्तान न होने के कष्ट से दुःखी थे । भगवान् के भजन-पूजन से उन्हें एक पुत्ररत्न हुआ । ज्योतिषियों ने लग्न देख भविष्यवाणी की कि यह बालक बहुत प्रतापी राजा होगा। पन्द्रह वर्ष की आयु में प्रेम-पोड़ा के कारण घर छोड़ देगा। इधर-उधर मार्ग में कठोर कष्ट होंगे। बाद में ३ विवाह करके घर लौट आयेगा। पिता ने इसीलिए १३ वर्ष की अवस्था तक पहुँचते-पहुँचते कुमार की शिक्षा समाप्त करा दी और विवाह कर दिया। इसकी पत्नी चन्द्रप्रभा नामक एक रूपवती राजकुमारी थी । इन दोनों का जीवन बड़े आनन्द के साथ बीतने लगा। एक दिन दोनों नगर में घूमते-घूमते 'गुदड़ी' बाजार की ओर निकल गये । वहाँ एक कोने में बहुत भीड़ जमा थी। राजकुमार कूतहलवश उधर देखने गया तो देखा एक आदमी एक सुन्दर तोते को बेच रहा है। कुमार ने तोता खरीद लिया और चन्द्रप्रभा के साथ घर वापिस आ गया। राजकुमार तोते को अपने शयनागार में ही रखता था। एक दिन चन्द्रप्रभा ने खूब शृङ्गार किया और अपने रूप के विषय में उसने सखियों से पूछा, सखियों ने प्रशंसा को । लेकिन चन्द्रप्रभा और कुछ सुनना चाहती थी। वह अपने रूप पर मुग्ध हो रही थो। इससे वह तोते के पिंजरे के पास गई और उससे पूछा कि "क्या तुमने मुझ-सी सुन्दरी को कहीं देखा है?" तोते ने कोई उत्तर नहीं दिया। उसने फिर वही प्रश्न दोहराया। तोता फिर चुप ही रहा । चन्द्रप्रभा ने पुनः वही प्रश्न किया। इस बार तोते ने नम्रता से कहा कि “किसी को गर्व नहीं करना चाहिए क्योकि रावण का भी गर्व टूट गया था, तुम्हारा क्या?" वह इस उत्तर से आगबबूला हो उठी। उसका चेहरा क्रोध से लाल था। इतने में राजकुमार आ गया और उसने चन्द्रप्रभा से उसके क्रोध का कारण पूछा। चन्द्रप्रभा कुछ नहीं बोली। तोते ने सारी बात यथावत् सुना दी और कहा-इसी पर यह क्रुद्ध है। उसने राजकुमार को बताया कि उत्तर देश में कनकपुर नाम का एक सुन्दर नगर है । वहाँ पहुंचने में १ वर्ष लगेगा। उस नगर को राजकुमारी संसार को सबसे सुन्दर स्त्री है। उसका नाम 'ससिकला'
SR No.002250
Book TitleApbhramsa Kathakavya evam Hindi Premakhyanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherSohanlal Jain Dharm Pracharak Samiti
Publication Year1973
Total Pages382
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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